Uttar Pradesh

आईआईटी कानपुर में सैनिकों की सहूलियतों को लेकर तकनीक पर हुआ मंथन

कार्यक्रम के दौरान लिया गया छाया चित्र

कानपुर, 17 सितंबर (Udaipur Kiran) । आईआईटी कानपुर में रक्षा क्षेत्र से जुड़ी तकनीकाें काे लेकर कार्यशाला का आयाेजन किया गया। कार्यशाला में आईआईटी कानपुर के अलावा देश के नामचीन संस्थानाें ने भाग लिया और सैनिकों की सहूलियतों को लेकर तकनीक पर मंथन हुआ। कार्यक्रम संयाेजक प्रो. विवेक कांत ने बताया कि यह कार्यक्रम इस सोच के साथ बनाया गया है कि कैसे हम सैनिकों की असली समस्याओं को समझें, उनका समाधान खोजें और इस दिशा में मिलकर एक रोडमैप तैयार करें। अकादमिक जगत, रक्षा संस्थान और उद्योग एक साथ मिलकर काम करें, तो अच्छे और टिकाऊ समाधान निकाल सकते हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया, जिसका विषय रक्षा क्षेत्र में मानव-केंद्रित डिजाइन था। मीडिया प्रभारी ने बुधवार काे बताया कि कार्यक्रम में शिक्षा, रक्षा और उद्योग से जुड़े प्रमुख विशेषज्ञ शामिल हुए। यह कार्यशाला (डिफेंस इनोवेशन एक्सेलेरेटर फॉर सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजीज – सेंटर ऑफ एक्सीलेंस) के अंतर्गत आयोजित की गई थी।

कार्यक्रम में संजय टंडन ने स्वागत भाषण में कहा कि मानव-केंद्रित डिजाइन सिर्फ एक सोच नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है। कोई भी तकनीक तभी सफल मानी जाएगी, जब वो सैनिकों के लिए समझने में आसान, उपयोग में आसान और उनके लिए उपयोगी हो। डीआरडीओ के एलसी मंगल ने कहा कि, किसी भी रक्षा तकनीक का असली मूल्य तभी है, जब वो सैनिकों के लिए उपयोगी और सुविधाजनक हो। उन्होंने सुझाव दिया कि डीआरडीओ में मानव-केंद्रित डिजाइन पर एक अलग सेक्शन शुरू होना चाहिए और आईआईटी कानपुर को इसमें पूरा सहयोग दिया जाएगा।

कार्यशाला में विंग कमांडर सिद्धार्थ सिंह (रिटायर्ड) ने भी हिस्सा लिया, जो 3,000 घंटे से ज़्यादा की उड़ान का अनुभव रखते हैं। उन्होंने बताया कि फाइटर प्लेन की कॉकपिट डिज़ाइन में क्या चुनौतियां आती हैं और कैसे एक छोटी गलती जानलेवा बन सकती है। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि डिज़ाइन इस तरह हो कि पायलट को कम से कम सोचना पड़े और चीज़ें अपने आप समझ में आएं।

इसके अलावा आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी गुवाहाटी, आईआईटी इंदौर और कई अनुभवी डिज़ाइनरों ने भी हिस्सा लिया और बताया कि कैसे अच्छी डिज़ाइन सैनिकों के काम को आसान बना सकती है।

बाद में एक ब्रेनस्टॉर्मिंग सेशन भी हुआ जिसमें टीम्स ने मिलकर सोचा कि सैनिकों को क्या दिक्कतें आती हैं और उनके लिए कैसी तकनीक बनाई जा सकती है। जो सुझाव इस सेशन से आए, उन्हें एक व्हाइट पेपर यानी एक रिपोर्ट के रूप में तैयार किया जाएगा, जो आगे की रिसर्च और नीति निर्माण में काम आएगी।

कार्यशाला के अंत में यह साफ हुआ कि आईआईटी कानपुर सिर्फ नई तकनीक बनाने में ही नहीं, बल्कि तकनीक को इंसानों के लिए आसान और उपयोगी बनाने में भी आगे है। डीआरडीओ और उद्योग के साथ मिलकर संस्थान ऐसी तकनीकें बना रहा है जो हमारे सैनिकों के जीवन को सुरक्षित, सरल और बेहतर बनाएंगी।

(Udaipur Kiran) / रोहित कश्यप

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