

जयपुर, 23 सितंबर (Udaipur Kiran News) । आयुर्वेद और देशी चिकित्सा पद्धति में काली हल्दी (ब्लैक टर्मरिक) का विशेष महत्व है। यह औषधीय पौधा कैंसर, माइग्रेन, बाल झड़ना, अस्थमा और घुटनों के दर्द जैसी गंभीर बीमारियों के उपचार में बेहद उपयोगी माना जाता है।
पिछले सात वर्षों से राजधानी जयपुर के टोंक रोड सांगानेर की पिंजरापोल गौशाला में स्थित जैविक वन औषधि केंद्र में प्राकृतिक तरीके से काली हल्दी की खेती की जा रहीं है। इस केंद्र के अध्यक्ष अतुल गुप्ता के मार्गदर्शन में काली हल्दी को औषधीय स्वरूप में विकसित कर देश-विदेश तक पहुंचाया जा रहा है।
वैसे तो काली हल्दी की खेती भारत के अधिकांश राज्यों में की जाती है। लेकिन जलवायु के अनुसार विशेष रुप केरल, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक में की जाती है। यहां भारत के कुल उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा काली हल्दी उत्पादित किया जाता है । काली हल्दी को गर्म, आर्द्र जलवायु (ह्यूमिडिटी) और अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी पसंद होती है और इन्ही सिद्धांतों को अपनाते हुए जैविक वन औषधि केंद्र में काली हल्दी की खेती की जा रही है।
वैदिक औषधीय पादप केंद्र अध्यक्ष अतुल गुप्ता ने बताया कि पहले काली हल्दी की खेती केरल, मेघालय ,अरुणाचल प्रदेश ,गुजरात, कर्नाटक, असम में होती थी। अब राजस्थान में भी काली हल्दी की फसल तैयार की जा रही है।
काली हल्दी एक प्राकृति औषधि है। जिससे कैंसर ,माईग्रेन ,बाल का झड़ना, अस्थमा और घुटने के दर्द का उपचार किया जाता है। ये औषधि जैविक वन औषधि में खेती के माध्यम से तैयार की जा रहीं है। इस औषधि को पाउडर और लिक्विड के रूप में तैयार किया जा रहा है। इन औषधि की देश-विदेश में काफी मांग है ।
गुप्ता ने बताया कि सांगानेर की पिंजरापोल गौशाला के अलावा सीकर रोड़, अलवर ,चौमूं, भीलवाड़ा के जहाजपुर सहित करीब दस स्थानों से भी ज्यादा जगहों पर काली हल्दी की खेती की जा रहीं है। लेकिन काली हल्दी उत्पादन का प्रमुख केंद्र सांगानेर पिजरापोल गौशाला में स्थित जैविक वन औषधि केंद्र है। उन्होंने बताया की पिछले सात सालों से काली हल्दी की खेती प्राकृतिक सुरक्षा की दृष्टि से ध्यान रखते हुए की जा रही है।
राजस्थान में काली हल्दी की खेती ने यह साबित कर दिया है कि देशी औषधीय पौधों की क्षमता आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी प्राचीन काल में थी। यह न केवल स्वास्थ्य सुरक्षा का साधन बन रही है, बल्कि आर्थिक सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी अहम कदम है।
काली हल्दी की खेती न केवल आयुर्वेदिक चिकित्सा को मजबूत कर रही है, बल्कि यह प्राकृतिक सुरक्षा और जैविक खेती को भी बढ़ावा दे रही है। खेती में रसायनों का उपयोग न के बराबर है, जिससे पर्यावरण की रक्षा भी हो रही है। किसानों के लिए यह नई फसल लाभकारी साबित हो रही है और आय का नया साधन बन रही है।
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(Udaipur Kiran)
