Uttar Pradesh

हमीरपुर जेल का काला सचः बंदी की मौत के बाद खुले भ्रष्टाचार के राज

हमीरपुर जिला कारागार

हमीरपुर, 20 सितम्बर (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिला कारागार में विचाराधीन बंदी अनिल तिवारी की संदिग्ध मौत के बाद जेल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। 14 सितम्बर को हुई इस मौत के बाद जेलर, डिप्टी जेलर सहित सात लोगों के खिलाफ हत्या समेत संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ था, लेकिन हैरानी की बात यह है कि अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। निलम्बन की औपचारिक कार्रवाई जरूर हुई, मगर इसके बाद से जेल की ऊंची-ऊंची दीवारों के पीछे छिपे कई सनसनीखेज मामले एक-एक कर सामने आ रहे हैं।

–बंदियों ने खोला राजपेशी पर कोर्ट आए बंदियों ने जेल के अंदर चल रहे भ्रष्टाचार की पोल खोल दी। उनका आरोप है कि निलम्बित जेलर चंदीला और डिप्टी जेलर संगेश ने जेल को कमाई का अड्डा बना रखा था। यहां अमीर कैदी चैन की जिंदगी जीते थे, जबकि गरीब बंदियों को नारकीय यातनाएं सहनी पड़ती थीं। बंदियों के मुताबिक, दस हजार रुपये देने पर बेहतर खाना उपलब्ध कराया जाता था। वहीं, 100 से 200 रुपये खर्च करने वाले कैदी छोटी बैरक से बड़ी बैरक तक पहुंच सकते थे और जेल परिसर में इधर-उधर घूम सकते थे। आरोप यह भी है कि मुलाकात की व्यवस्था पूरी तरह पैसों पर आधारित थी। नियम के अनुसार बंदियों को हफ्ते में एक और कैदियों को 15 दिन में एक बार परिजन से मिलने की अनुमति थी। पर्ची पर तीन नाम दर्ज होने के बावजूद वास्तव में सिर्फ एक ही व्यक्ति को मुलाकात कराई जाती थी, बाकी लोग दूर से ही खड़े होकर वापस भेज दिए जाते थे।

–गरीब बंदियों पर अत्याचारबंदियों ने दावा किया कि जिसके पास पैसे नहीं थे, उनकी हालत मृतक अनिल तिवारी जैसी हो जाती थी। उन्हें न तो बेहतर खाना मिलता था और न ही सामान्य सुविधा। वे सिर्फ जेल प्रशासन की मनमानी का शिकार बनते थे।

–प्रशासन ने आरोपों को नकाराजेल अधीक्षक मंजीव विश्वकर्मा ने शनिवार को इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उनका कहना है कि जेल में समय-समय पर डीएम, एसपी और न्यायिक अधिकारी निरीक्षण करते रहते हैं। ऐसे में गड़बड़ी की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जेल कैंटीन में पूड़ी-सब्जी जैसे भोजन की दरें तय हैं और हर लेन-देन का ब्यौरा बाकायदा दर्ज किया जाता है।

–गिरफ्तारी न होने से आक्रोशफिलहाल जेलर और डिप्टी जेलर को निलम्बित किया जा चुका है, लेकिन गिरफ्तारी न होने से मृतक बंदी अनिल तिवारी के परिजनों में गहरा आक्रोश है। बंदियों में भी नाराजगी साफ झलक रही है। सवाल यह है कि आखिरकार इन गंभीर आरोपों की जांच किस दिशा में जाएगी और क्या दोषियों को कड़ी सजा मिल पाएगी या मामला दीवारों के पीछे दबा दिया जाएगा। अब देखना यह होगा कि हमीरपुर जेल का यह काला सच कितनी गहराई तक खोदा जाता है और न्याय की डगर पर यह मामला कहां जाकर रुकता है।

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(Udaipur Kiran) / पंकज मिश्रा

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