Uttrakhand

दुतिया त्यार, च्यूड़ा बग्वाल, यम द्वितीया के रूप में मनाया गया भाई-बहन के प्रेम का पर्व भाई दूज

भाई को च्यूड़े पूजती बहन
च्यूड़े तैयार करती बहनें।

नैनीताल, 23 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में भाई दूज का पर्व दीपावली के साथ च्यूड़ा बग्वाल-दुतिया त्यार के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर बहनें एक-दो दिन पहले नये धान को भून और ऊखल में कूटकर च्यूड़े तैयार करती हैं। फिर च्यूड़ों को प्रतिष्ठित किया जाता है और भैया दूज के दिन यह च्यूड़े अपने भाइयों को पूजती हैं।

इसके लिये भाई-बहन दोनों सुबह नहा-धोकर तैयार होते हैं, और बहनें भाइयों को पिठ्यां-चंदन लगाकर उनके पैरों से शुरू करते हुए इन च्यूड़ों को सरसों के तेल व दुब यानी दूर्बा घास के साथ ‘लाख हरियाव, लाख दसें, जी रये-जागि रये, यो दिन-मास भेटनै रये, स्यू जस तरांण हो, स्यावैकि जैसि बुद्धि हो…’ आदि दुवाएं देते हुए उनके सिर में चढ़ाती हैं। अब भी परंपराओं को जानने वाली बहनें-भाई इस त्योहार को इसी रूप में मनाते हैं।

यह भी मान्यता है कि यदि बहनें विवाहित हों अथवा दूर हों तो इस दिन भाई अपनी बहनों के पास जाते हैं। उल्लेखनीय है कि इससे उलट रक्षा बंधन के पर्व पर बहनें अपने भाइयों के पास जाती हैं।

यह भी मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्य नारायण और उनकी पत्नी छाया के पुत्र व पुत्री यम यानी यमराज व यमुना भी इन दिन यह त्योहार मनाते हैं, और इस कारण इस त्योहार को यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन यमराज के अपनी बहन के पास जाने के कारण किसी की अल्पमृत्यु नहीं होती है और इस दिन अपनी बहन से आशीर्वाद प्राप्त करने भाइयों की वर्षभर अल्पमृत्यु नहीं होती है।

(Udaipur Kiran) / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी

Uttrakhand

दुतिया त्यार, च्यूड़ा बग्वाल, यम द्वितीया के रूप में मनाया गया भाई-बहन के प्रेम का पर्व भाई दूज

भाई को च्यूड़े पूजती बहन
च्यूड़े तैयार करती बहनें।

नैनीताल, 23 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में भाई दूज का पर्व दीपावली के साथ च्यूड़ा बग्वाल-दुतिया त्यार के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर बहनें एक-दो दिन पहले नये धान को भून और ऊखल में कूटकर च्यूड़े तैयार करती हैं। फिर च्यूड़ों को प्रतिष्ठित किया जाता है और भैया दूज के दिन यह च्यूड़े अपने भाइयों को पूजती हैं।

इसके लिये भाई-बहन दोनों सुबह नहा-धोकर तैयार होते हैं, और बहनें भाइयों को पिठ्यां-चंदन लगाकर उनके पैरों से शुरू करते हुए इन च्यूड़ों को सरसों के तेल व दुब यानी दूर्बा घास के साथ ‘लाख हरियाव, लाख दसें, जी रये-जागि रये, यो दिन-मास भेटनै रये, स्यू जस तरांण हो, स्यावैकि जैसि बुद्धि हो…’ आदि दुवाएं देते हुए उनके सिर में चढ़ाती हैं। अब भी परंपराओं को जानने वाली बहनें-भाई इस त्योहार को इसी रूप में मनाते हैं।

यह भी मान्यता है कि यदि बहनें विवाहित हों अथवा दूर हों तो इस दिन भाई अपनी बहनों के पास जाते हैं। उल्लेखनीय है कि इससे उलट रक्षा बंधन के पर्व पर बहनें अपने भाइयों के पास जाती हैं।

यह भी मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्य नारायण और उनकी पत्नी छाया के पुत्र व पुत्री यम यानी यमराज व यमुना भी इन दिन यह त्योहार मनाते हैं, और इस कारण इस त्योहार को यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन यमराज के अपनी बहन के पास जाने के कारण किसी की अल्पमृत्यु नहीं होती है और इस दिन अपनी बहन से आशीर्वाद प्राप्त करने भाइयों की वर्षभर अल्पमृत्यु नहीं होती है।

(Udaipur Kiran) / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी

Most Popular

To Top