
बेंगलुरु, 3 जुलाई (Udaipur Kiran) । कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बेंगलुरु के एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर 4 जून को हुई भगदड़ मामले में सख्त रुख अपनाया है। गुरुवार को अदालत अदालत ने राज्य सरकार से पूछा कि इस हादसे के लिए पांच पुलिस अधिकारियों को निलंबित करना कितना जायज था? अदालत ने यह भी सवाल किया कि क्या इन अधिकारियों को दूसरी जगह तबादला करना काफी नहीं होता?
कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस.जी. पंडित और टी.एम. नदाफ की दो सदस्यीय पीठ ने सरकार से इस निलंबन के पीछे का ठोस कारण मांगा है। अदालत ने कहा कि सरकार को यह साबित करना होगा कि निलंबन का फैसला सही था या नहीं?
यह बात तब सामने आई जब कर्नाटक सरकार ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के 1 जुलाई के उस फैसले को चुनौती दी,जिसमें आईपीएस अधिकारी विकास कुमार का निलंबन रद्द कर दिया गया था।
न्यायाधिकरण ने विकास कुमार के निलंबन को बिना ठोस सबूतों वाला करार देते हुए उनकी तुरंत बहाली का आदेश दिया था। न्यायाधिकरण ने यह सुझाव भी दिया था कि बाकी चार निलंबित किए गए अधिकारियों को भी राहत दी जाए, जिनमें उस वक्त के पुलिस कमिश्नर बी. दयानंद भी शामिल थे। लेकिन सरकार ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है।
एडवोकेट जनरल शशि किरण शेट्टी ने अदालत में कहा कि न्यायाधिकरण ने जल्दबाजी में फैसला लिया और उन पांचों अधिकारियों को राहत देने की सलाह दी, जो इस मामले में पक्षकार भी नहीं थे। शेट्टी ने दावा किया कि उनके पास सबूत हैं कि ये पांचों अधिकारी अपने ड्यूटी में लापरवाही के दोषी हैं। उन्होंने अदालत से न्यायाधिकरण के आदेश पर रोक लगाने की अपील की।
शेट्टी ने अदालत को यह भी बताया कि न्यायाधिकरण के 1 जुलाई के आदेश के बाद विकास कुमार ने 2 जुलाई को बिना किसी औपचारिक आदेश के वर्दी पहनकर ड्यूटी जॉइन कर ली।
शेट्टी की दलील पर पीठ ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि अगली सुनवाई तक विकास कुमार को कोई जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए।
विकाश कुमार के वकील ने इस पर अदालत को भरोसा दिलाया कि उनका मुवक्किल अगली सुनवाई तक कोई कदम नहीं उठाएगा। इसके बाद अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 9 जुलाई को तय की है।
इससे पहले विकास कुमार ने न्यायाधिकरण में दावा किया था कि वो इस हादसे के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं, क्योंकि रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी)ने आईपीएल की जीत के जश्न की जानकारी पुलिस को पहले नहीं दी थी।
न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में कहा था कि आरसीबी ने इंस्टाग्राम पर बिना पुलिस की अनुमति के परेड और जश्न का ऐलान कर दिया, जिसके बाद भारी भीड़ स्टेडियम पहुंची। न्यायाधिकरण के मुताबिक, आरसीबी ने न तो पुलिस से अनुमति ली और नहीं कोई समन्वय किया।
उल्लेखनीय है कि 3 जून, 2025 को हुए आईपीएल के फाइनल में आरसीबी ने जीत दर्ज की थी। आरसीबी ने 4 जून को बेंगलुरु में जीत का जश्न मनाने का आह्वान किया। राज्य सरकार ने विधानसभा के सामने टीम के खिलाड़ियों को सम्मानित भी किया। जीत के जश्न के दौरान ही चिन्नास्वामी स्टेडियम के सामने भगदड़ मच गयी और 11 लोगों की मौत हो गई, जबकि 50 से अधिक लोग घायल हो गए।
राज्य सरकार ने इस घटना के लिए पुलिस अधिकारियों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया और बेंगलुरू शहर के पुलिस आयुक्त बी. दयानंद, पूर्वी शहर संभाग के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त विकास कुमार, केंद्रीय संभाग के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) शेखर एच. टेक्कन्नानवर, कब्बन पार्क के सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) सी. बालकृष्ण और कब्बन पार्क पुलिस स्टेशन के निरीक्षक ए.के. गरिश कुमार को निलंबित कर दिया था।
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कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बेंगलुरु के एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर 4 जून को हुई भगदड़ मामले में सख्त रुख अपनाया है। गुरुवार को अदालत ने राज्य सरकार से पूछा कि इस हादसे के लिए पांच पुलिस अधिकारियों को निलंबित करना कितना जायज था? अदालत ने सवाल उठाया कि क्या इन अधिकारियों को दूसरी जगह तबादला करना काफी नहीं होता?
कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस.जी. पंडित और टी.एम. नदाफ की दो सदस्यीय पीठ ने सरकार से इस निलंबन के पीछे का ठोस कारण मांगा। अदालत ने कहा कि सरकार को यह साबित करना होगा कि निलंबन का फैसला सही था या नहीं? यह बात तब सामने आई जब कर्नाटक सरकार ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के 1 जुलाई के उस फैसले को चुनौती दी। इस फैसले में आईपीएस अधिकारी विकाश कुमार विकाश का निलंबन रद्द कर दिया गया था।
न्यायाधिकरण ने विकाश कुमार के निलंबन को “मैकेनिकल” और बिना ठोस सबूतों वाला करार देते हुए उनकी तुरंत बहाली का आदेश दिया था। इतना ही नहीं, न्यायाधिकरण ने सुझाव दिया कि बाकी चार निलंबित किए गए अधिकारियों को भी राहत दी जाए, जिनमें उस वक्त के पुलिस कमिश्नर बी. दयानंद भी शामिल थे। लेकिन सरकार ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है।
उच्च न्यायालय में एडवोकेट जनरल शशिकिरण शेट्टी ने अदालत में कहा कि ट्रिब्यूनल ने जल्दबाजी में फैसला लिया और उन चार अफसरों को राहत देने की सलाह दी, जो इस मामले में पक्षकार भी नहीं थे। शेट्टी ने दावा किया कि उनके पास सबूत हैं कि ये पांचों अधिकारी अपने ड्यूटी में लापरवाही के दोषी हैं। उन्होंने अदालत से न्यायाधिकरण के आदेश पर रोक लगाने की अपील की।
शेट्टी ने अदालत को बताया कि न्यायाधिकरण के 1 जुलाई के आदेश के बाद विकास कुमार ने 2 जुलाई को बिना किसी औपचारिक आदेश के वर्दी पहनकर ड्यूटी जॉइन कर ली। इस पर उच्च न्यायालय की पीठ ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि अगली सुनवाई तक विकास को कोई जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 9 जुलाई को तय की है।
विकास कुमार के वकील, सीनियर एडवोकेट धन्य चिनप्पा ने अदालत को भरोसा दिलाया कि उनका मुवक्किल अगली सुनवाई तक कोई कदम नहीं उठाएगा। विकास कुमार ने न्यायाधिकरण में दावा किया था कि वो इस हादसे के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं, क्योंकि रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु ने आईपीएल जीत की के जश्न की जानकारी पुलिस को पहले नहीं दी थी।
उल्लेखनीय है कि न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में कहा था कि आरसीबी ने इंस्टाग्राम पर बिना पुलिस की अनुमति के परेड और जश्न का ऐलान कर दिया, जिसके बाद भारी भीड़ स्टेडियम पहुंची। न्यायाधिकरण के मुताबिक, आीसीबी ने न तो पुलिस से अनुमति ली और न ही कोई समन्वय किया। इस हादसे में 11 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 50 से अधिक लोग घायल हो गए थे। हादसे के बाद 5 जून को विकास कुमार समेत पांच पुलिस वालों को निलंबित कर दिया गया था।
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(Udaipur Kiran) / राकेश महादेवप्पा
