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बैंक का ओटीएस योजना समयबद्ध है, उधारकर्ता को आगे बढ़ाने की मांग करना अधिकार नहीं : उच्च न्यायालय

इलाहाबाद हाईकाेर्ट

प्रयागराज, 09 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा है कि प्रत्येक ’एकमुश्त निपटान’ (ओटीएस) योजना ’समयबद्ध’ है और किसी उधारकर्ता को उक्त योजना के तहत निर्धारित अवधि से आगे विस्तार मांगने का कोई निहित अधिकार नहीं है।

न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की पीठ ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता एसओटीएस योजना 2022-23 के तहत पुनर्भुगतान समय सीमा का पालन करने में विफल रहे हैं। जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ओटीएस के लिए अधिकतम पुनर्भुगतान अवधि 180 दिन थी।

हाईकोर्ट ने इसी के साथ मेसर्स जाहरवीर महाराज एग्रो प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज कर दिया तथा कहा कि प्रत्येक ’एकमुश्त निपटान’ (ओटीएस) योजना ’समयबद्ध’ है। किसी उधारकर्ता को उक्त योजना के तहत निर्धारित अवधि से आगे विस्तार मांगने का कोई निहित अधिकार नहीं है।

मामले के अनुसार याचिकाकर्ताओं ने 2017 में पंजाब नेशनल बैंक से लिए गए ऋण खातों का भुगतान नहीं किया। जब खातों को गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां घोषित कर दिया गया, तो याचिकाकर्ताओं ने एकमुश्त भुगतान (ओटीएस) के लिए आवेदन किया। 10 मई 2023 को पंजाब नेशनल बैंक ने एसओटीएस योजना 2022-23 के तहत इसे मंजूरी दे दी। हालांकि, याचिकाकर्ता आवश्यकता अनुसार भुगतान करने में विफल रहे और इस प्रकार, 25 अप्रैल 2024 को ओटीएस रद्द कर दिया गया। ऐसा तब किया गया जब बैंक ने याचिकाकर्ताओं को ओटीएस राशि का भुगतान पूरा करने के लिए कई बार लिखा था।

मई 2024 के रद्दीकरण आदेशों के बाद, बैंक ने दिसम्बर 2024 में बंधक सम्पत्तियों की नीलामी की कार्यवाही शुरू की। ऐसी ही एक सम्पत्ति 27 जनवरी 2025 को बेची गई, जिसका बिक्री प्रमाण पत्र 2 फरवरी 2025 को जारी किया गया। अदालत के समक्ष, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि ओटीएस अभी भी लागू है और बैंक पुनर्भुगतान अवधि बढ़ाने के लिए बाध्य है। यह भी तर्क दिया गया कि पुनर्भुगतान के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है, क्योंकि ओटीएस प्रदान करने वाले पत्र में कोई समय-सीमा प्रदान नहीं की गई थी।

इन दलीलों को खारिज करते हुए, खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को ओटीएस प्रदान करने वाला 10 मई, 2023 का पत्र विशेष रूप से एसओटीएस योजना 2022-23 का उल्लेख करता है। और उक्त योजना में स्पष्ट रूप से प्रावधान किया गया है कि अधिकतम पुनर्भुगतान अवधि 180 दिन होगी। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि कोई भी ओटीएस समयबद्ध होता है और याचिकाकर्ता यह तर्क नहीं दे सकते कि इसके पुनर्भुगतान के लिए कोई समय-सीमा तय नहीं की गई थी।

हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता एसओटीएस योजना 2022-23 के खंड 7.3 से 7.5 के तहत निर्धारित 180 दिनों के भीतर भुगतान नहीं किए जाने का कोई उचित कारण नहीं बता पाए हैं। अदालत ने कहा कि इसी कारण, बैंक को याचिकाकर्ताओं को प्रदान की गई एकमुश्त छूट को रद्द करने और कानून के अनुसार प्रतिभूतियों को तीसरे पक्ष को बेचने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। परिणामस्वरूप, यह पाते हुए कि बंधक रखी गई सम्पत्ति की बिक्री और जारी किए गए बिक्री प्रमाण पत्र के माध्यम से तीसरे पक्ष के अधिकार पहले ही बनाए जा चुके थे। न्यायालय ने कहा कि बैंक द्वारा की गई कार्रवाई में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं था, जो कि सद्भावनापूर्ण तरीके से आगे बढ़ाई गई थी। कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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