नैनीताल, 27 अगस्त (Udaipur Kiran) । उच्च न्यायालय ने रामनगर क्षेत्र के पुछड़ी गांव में 1986 के बाद बसे लगभग 250 मकानों और दुकानों को ध्वस्तीकरण करने के जिला विकास प्राधिकरण के आदेश पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि प्राधिकरण बिना सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का पालन किए किसी भी कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ा सकता। कोर्ट में जिला विकास प्राधिकरण ने स्पष्ट किया है कि वह न्यायालय के आदेशों की अवहेलना नहीं करेगा और भविष्य की जा रही कार्यवाही के लिए एक पोर्टल भी तैयार किया जाएगा। कोर्ट ने 15 दिन का जो नोटिस प्राधिकरण ने जारी किया था उसे सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना माना।
मुख्य न्यायाधीश जी नरेन्दर एवं न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। ग्रामीणों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा था कि 30 जुलाई 2025 को प्राधिकरण ने पुछड़ी गांव के निवासियों को नोटिस भेजकर कहा था कि 1986 के आदेश के अनुसार यह क्षेत्र मास्टर प्लान में हरित या खुला क्षेत्र घोषित है, इसलिए 15 दिन के भीतर स्वयं ही मकानों को ध्वस्त करें। इस नोटिस को प्रभावित परिवारों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और इसे असंवैधानिक करार दिया। सुनवाई के दौरान ग्रामीणों के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि नगर नियोजन विकास अधिनियम 1973 के अनुसार यदि 10 वर्षों तक सरकार भूमि का अधिग्रहण नहीं करती है तो उसे खुला क्षेत्र नहीं माना जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि न्यायालय ने वर्ष 2024 और 2025 में देशभर के प्राधिकरणों और नगर निकायों को दिशा निर्देश भेजे थे कि निजी अतिक्रमण हटाने से पूर्व प्रभावित को डाक और व्यक्तिगत रूप से नोटिस देकर भवन और भूमि का पूर्ण विवरण उपलब्ध कराना अनिवार्य है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जिला अधिकारी के नियंत्रण में एक पोर्टल बनाया जाए जिस पर प्रभावितों की आपत्तियां दर्ज की जाएं और बिना उनकी बात सुने कोई अग्रिम कार्रवाई न हो। न्यायालय ने प्राधिकरण से पूछा कि क्यों न उनके विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दी जाए क्योंकि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन नहीं किया। इस पर प्राधिकरण ने आश्वासन दिया कि भविष्य में वे सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करेंगे और तब तक पुछड़ी गांव में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई स्थगित रहेगी।
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(Udaipur Kiran) / लता
