RAJASTHAN

बैकुंठ चतुर्दशी: जयपुर के 135 साल पुराना मंदिर बैकुंठ नाथ जी में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़

बैकुंठ चतुर्दशी: जयपुर के 135 साल पुराना मंदिर बैकुंठ नाथ जी में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़

जयपुर, 4 नवंबर (Udaipur Kiran) । कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी मंगलवार को विशेष योग संयोगों में बैकुंठ चतुर्दशी के रूप में मनाई गई। इस मौके पर दान पुण्य के साथ ही शाम को दीपदान किया गया। ठाकुर जी के बैकुंठनाथ स्वरूप का पूजन किया गया। शिवालयों में हरिहर मिलन के भाव से शिवजी और भगवान विष्णु की झांकी सजाई गई। वहीं राजधानी जयपुर का एकमात्र 135 साल पुराना भगवान बैकुंठ नाथ जी का सोडाला स्थित मंदिर भी बेहद खास है। जहां विधानसभा के पहले प्रोटेम स्पीकर रहे सामोद के जागीरदार रावल संग्राम सिंह की माता कंचन कंवर ने पति फतेह सिंह की याद में मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर में बैकुंठ में निवास करने वाले भगवान विष्णु (बैकुंठ नाथ) और लक्ष्मी जी चतुर्भुज रूप में विराजमान हैं। सिंहासन और बैकुंठी जिसमें नाव,सीढ़ी, भगवान विष्णु की चांदी की प्रतिमा विशेष है। किंवदंती है कि विग्रह एक ही समय में अलग-अलग श्रद्धालुओं को अनेक स्वरूपों में दर्शन देता है। अभी फिलहाल महंत पंडित नारायण की पांचवीं पीढ़ी मंदिर की सार संभाल कर रही है।

पुजारी राजेन्द्र शर्मा ने बताया कि प्रदेश का एकमात्र जयपुर के सोडाला में भगवान बैकुंठ नाथ जी मंदिर है। जहां भगवान विष्णु और लक्ष्मी चारभुजाधारी के रूप में विराजमान है।जहां मंगलवार को मोक्ष प्राप्ति के लिए बैकुंठ चतुर्दशी पर यहां दर्शनों के साथ ही दिनभर भक्तों की बड़ी संख्या में आवाजाही के साथ ही मेले सा माहौल दिखा। इस दिन चांदी का दान विशेष माना गया।

पुजारी राजेन्द्र शर्मा ने बताया कि भगवान विष्णु की मूर्ति चारभुजाधारी है। हाथों में शंख, चक्र, गदा, पद्म धार कए हैं। लक्ष्मी जी के एक हाथ में कमल पुष्प व दूसरा हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में है। यहां 4.45 फीट की बैकुंठ और चार फीट की लक्ष्मी जी की प्रतिमा बेहद खास है। मंदिर में दीवारों पर स्वर्ण की चित्रकारी में राम-सीता विवाह की झांकी के साथ राम राज्याभिषेक, नृसिंह अवतार, मत्स्य अवतार सहित अन्य चित्रकारी भी देखने लायक है।

महंत श्री कृष्ण चंद शर्मा और युवाचार्य पंडित विनोद कुमार शर्मा ने बताया कि यह एकमात्र ऐसी तिथि है। जिस दिन भगवान शिव और विष्णु दोनों को समान रूप से पूजा जाता है। मान्यता है कि बैकुंठ धाम में जाने के लिए वैतरणी नदी पार करनी पड़ती है। इसलिए नाव सहित अन्य सामग्री भेंट करना फलदायी है। सभी देवता व ऋषि बैकुंठ लोक में एकत्रित होकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। जिससे उन्हें बैकुंठनाथ कहा जाता है।

बैकुंठ नाथ मन्दिर में मंगलवार को बैकुंठ चौदस पर श्रद्वालुओं की अपार भीड़ देखने को मिली। महिलाओं ने मंदिर परिसर में पहुंच कर किसी ने 108 तो किसी ने 8 परिक्रमा लगाई और खुशहाली की मनोकामना मांगी।

—————

(Udaipur Kiran)