Uttar Pradesh

आयुर्वेद भारतीय ज्ञान परम्परा की अमूल्य धरोहर : डॉ. जीएस तोमर

गोरखपुर, 14 नवम्बर (Udaipur Kiran) । महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर (एमजीयूजी) के गुरु गोरक्षनाथ इंस्टिट्यूटऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) में बीएएमएस के नए बैच के विद्यार्थियों के लिए जारी कार्यक्रमों की श्रृंखला में शुक्रवार को आरोग्य भारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं विश्व आयुर्वेद मिशन के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. जीएस तोमर का विशेष व्याख्यान हुआ।

भारतीय ज्ञान परम्परा एवं आयुर्वेद विषय पर व्याख्यान देते हुए डॉ. तोमर ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा बहुत ही प्राचीन है। इस ज्ञान-विज्ञान का एक समृद्ध और विविधता पूर्ण इतिहास है। यह परम्परा हजारों सालों से चली आ रही है जो सदियों से मानव सभ्यता को आकार देती रही है। यह परम्परा सिर्फ भारत की सीमाओं तक ही सीमित नहीं रही है, बल्कि विश्व के विभिन्न हिस्सों में इसका गहरा प्रभाव पड़ा है। हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता ने सदियों से विज्ञान, गणित, खगोल, चिकित्सा, आयुर्वेद, योग और दर्शन जैसे अनेक क्षेत्रों में अद्वितीय योगदान दिया है। भारतीय मनीषियों ने अपने गहन चिंतन और अनुसंधान से न केवल अपने देश में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी विज्ञान और ज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान हासिल किया।

डॉ. तोमर ने कहा कि ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद चारों वेदों में प्राकृतिक विज्ञान, चिकित्सा और गणित के सिद्धांतों का वर्णन मिलता है। उपनिषद, जो वेदों के ही हिस्से हैं, भारतीय दर्शन का केंद्र बिंदु माने जाते हैं। आयुर्वेद एवं योग इस परम्परा के आरोग्य प्रदान करने वाले जीवंत विज्ञान हैं। दोनों ही आज भारत की चारदीवारी से निकलकर वैश्विक क्षितिज पर प्रतिष्ठापित हो रहे हैं। 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस आज वैश्विक स्तर पर मनाया जा रहा है । इसी प्रकार आयुर्वेदीय जीवनशैली, स्वास्थ्य संरक्षण व संवर्धन के उपाय तथा इसकी निरापद चिकित्सा के साथ साथ इसकी होलिस्टिक एप्रोच विश्व चिकित्सा जगत के आकर्षण का केंद्र बनती जा रही है।

डॉ. तोमर ने कहा कि आयुर्वेद में वर्णित प्रकृति परीक्षा, नाड़ी परीक्षा सहित नैदानिक पद्धति एवं चिकित्सा के सिद्धांत आधुनिक चिकित्साविदों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। पाइल्स, फिशर एवं फिश्चुला जैसे गुदा रोगों की चिकित्सा में प्रयुक्त क्षार सूत्र एवं अग्नि कर्म अत्यन्त प्रभावी होने के साथ-साथ रोगों की समूल चिकित्सा के उपाय हैं। यही नहीं सिरावेध एवं जलौकावचरण आयुर्वेद चिकित्सा की अद्वितीय देन है। भारतीय ज्ञान-विज्ञान का विश्व के विभिन्न हिस्सों में व्यापक प्रभाव पड़ा है।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में डॉ. नवोदय राजू ने डॉ. तोमर का परिचय कराया तथा आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्य डॉ. गिरिधर वेदांतम ने अतिथि वक्ता का स्वागत एवं अभिनंदन किया।

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(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय