
रांची, 27 जून (Udaipur Kiran) । ऐतिहासिक जगन्नाथपुर मंदिर धुर्वा से रथयात्रा की भव्य शुरुआत के साथ शुक्रवार को भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र तीनों श्रीविग्रह, विधिवत पूजा-अर्चना श्रद्धा के साथ, अपने मौसी घर, मौसीबाड़ी पहुंचे। रथयात्रा को लेकर पूरी राजधानी भक्ति में डूबी रही।
इसके पूर्व अहले सुबह से यहां श्रद्धालुओं का मंदिर परिसर और मेले मेंजनसैलाब उमड़ा। लोगों की आस्था देखते ही बन रही थी। हर कोई रथ को छूने और भगवान को मौसीबाड़ी तक पहुंचाने की लालसा लिए अनुष्ठान में शामिल होना चाह रहा था। आचार्य और श्रद्धालुओं के जयकारों, मंत्रोच्चार और वाद्ययंत्रों की गूंज ने जगन्नाथपुर मंदिर परिसर में भक्तिभाव से लोग सराबोर हो गएा।
मुख्य मंदिर जगन्नाथपुर से लेकर मौसीबाड़ी मंदिर तक का वातावरण भक्ति में डूबा रहा।
रथ मेला की भव्य परंपरा के अनुसार हर वर्ष भगवान तीनों भाई-बहन रथ पर सवार होकर मौसीबाड़ी पहुंचते हैं। जहां वे अगले नौ दिनों तक निवास करेंगे। इसके बाद पुनः घूरती रथ के माध्यम से मुख्य मंदिर में वापसी होगी।
जगन्नाथपुर मेला धार्मिक आस्था, मानवता और समर्पण का प्रतीक : सुधांशुनाथ
जगन्नाथपुर मंदिर न्यास समिति के सदस्य सह मंदिर के प्रथम सेवक और सेवाईत एवं बड़कागढ़ स्टेट के प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी ठाकुर सुधांशुनाथ शाहदेव ने कहा कि यह रथयात्रा केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि मानवता, समर्पण और सामाजिक एकता का प्रतीक है। भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र नौ दिनों के लिए मौसीबाड़ी पहुंचे हैं, जहां नौ दिनों तक भगवान को गुंडीचा भोग लगेगा। विधि विधान के साथ पूजा की जाएगी।
उन्होंने बताया कि यह पर्व हमारे जीवन में शुद्धता, त्याग और धर्म की भावना जागृत करता है। उन्होंने श्रद्धालुओं से अपील किया कि वे श्रद्धा और अनुशासन के साथ रथयात्रा उत्सव में भाग लें और झारखंड की इस सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखें।
क्या है इतिहास
ठाकुर सुधांशुनाथ शहदेव ने बताया कि साल 1691 में बड़कागढ़ रियासत के नागवंशी राजा ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने रथयात्रा की शुरूआत की थी। इसके बाद से रथयात्रा की यह पौराणिक परंपरा अबतक चल रही है। जगन्नाथपुर रथ मेला आयोजन की भव्यता और श्रद्धालुओं की भागीदारी समय के साथ लगातार बढ़ती जा रही है। अब इसे वैश्विक स्तर पर पूरी मंदिर की तर्ज पर पहचान दिलाने की दिशा में सरकार को उत्तरदायित्व का निर्वहन करना चाहिए।
धार्मिक आस्था परंपरागत जीवन शैली की अनूठी मिशाल
मेले का यह रूप न केवल धार्मिक आस्था को प्रकट करता है, बल्कि यह ग्रामीण जीवन की समृद्ध विरासत और कारीगरी को भी सामने लाता है। तभी तो मेले परिसर में पईला, मांदर, ढोल, नगाड़ा, झंझरा, तीर-धनुष, कुमनी, बंशी, जैसी आकर्षक वस्तुओं की बिक्री हो रही हैै। वहीं मेले में तीन हजार से लेकर 45 सौ रुपए तक का नगाड़े और ढोलक की बिक्री हो रही है।
परंपरागत चीजों की खरीददारी करने की होड
रथ मेले को गाय, बकरी और भैंस के गले में बांधने वाली घंटियों की झंकार, चावल छाननेवाला झंझरा समेत अन्य चीजों की बिक्री मेले को एक अलग पहचान दे रही है। दूर-दराज के इलाकों से आए लोग पारंपरिक चीजों की खरीदारी करते दिखे। ये वस्तुएं न सिर्फ ग्रामीण संस्कृति की पहचान हैं, बल्कि सैकड़ों कारीगरों की जीविका का साधन भी हैं। रथ मेला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और पारंपरिक जीवनशैली का संगम है। इसके सफल आयोजन में जिला प्रशासन रांची और जगन्नाथ मंदिर न्यास समिति अहम योगदान निभाती है।
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(Udaipur Kiran) / Manoj Kumar
