

जयपुर, 12 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । दीपावली का त्यौहार आने से पहले कुम्हारों के चाक ने अपनी रफ्तार पकड़ ली और कुम्हारों ने मिट्टी के आकार बदल कर दीपक बनाने में जुट गए। दशहरे के पर्व संपन्न होने के बाद से ही कुम्हार मिट्टी के दीपक बनाने में जुट जाते है। लेकिन इस बार बरसात के दौर में कुम्हार समाज की कमर टूटती हुई नजर आई। बरसात के चलते इस बार मिट्टी के दीपक गीले होने के डर से कम बनाए गए है। जिसके कारण बाजार में इनकी पूर्ति कम हुई है। मिट्टी के दीपक और बर्तन बनाने की ये परम्परा कुम्हार समाज में वर्ष से चली आ रहीं है। पहले ये हाथों से चाक को घुमाते और उसकी सहायता से मिट्टी के दीपक और बर्तन बनाते थे। लेकिन अब बदलते युग में कुम्हार समाज ने इलेक्ट्रिक आईटम का सहारा लेना शुरु कर दिया है। अब मोटर की सहायता से ये चाक को घुमाते है और उस पर मिट्टी के बर्तन और दीपक बनाते है।
दीपक प्रजापत ने बताया कि कुम्हार समाज में मिट्टी के बर्तन और दीपक बनाने की कला काफी पुरानी है और वो उन्हे विरासत में मिली है। लेकिन पहले में ग्राहक 100 दीपक से अधिक खरीदते थे और शगुन के तौर पर पूरे मोहल्ले में और मंदिरों में जलाते थे। लेकिन अब बदलते युग में ग्राहक केवल शगुन के ही 11 या 21 दीपक खरीदते है। वैसे तो दीपावली पर मिट्टी के दीपक बनाने का चलन आज भी है। लेकिन कुछ समय से मिट्टी के दीपक की जगह अब चायनीज और गुजराती दीपकों ने ले ली है। लेकिन आज भी मिट्टी के दीपक जलाने का महत्व कम नहीं हुआ है। बताया जाता है कि दीपक बनाने में काफी मेहनत लगती और आय भी काफी कम है । लेकिन पुरानी परम्परा को जीवित रखने के लिए मिट्टी के दीपक बनाए जाते है।
ग्यारसी लाल प्रजापति ने बताया कि मिट्टी के दीपकों को आकार देना काफी मुश्किल काम है। सबसे पहले चिकनी मिट्टी को काफी बारीक करना पड़ता है। जिसके बाद उसमें से कंकड,पत्थर साफ करने पड़ते है। जिसके बाद उसे चाक पर रखकर घुमाया जाता है और दीपक का आकार दिया जाता है। जिसके बाद दीपक को सुखाया जाता है और भट्टी में पकाकर सख्त किया जाता है और अंत में रंग दिया जाता है। छोटे दीपकों की कीमत रुपया और बड़े दीपक और सुराही की कीमत करीब 5 रुपए है। लेकिन इतनी मेहनत के बाद भी बाजार में दीपकों की सहीं कीमत नहीं मिल पाती है। इस कारण अब युवा पीढ़ी इस कला में जाने से डरने लगी है। पहले मिट्टी के बर्तनों की कीमत बाजार में अच्छी मिलती थी। लेकिन अब प्लास्टिक के आईटम आने के बाद मिट्टी के बर्तन की बाजार में डिमांड कम हो गई है।
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(Udaipur Kiran)
