


अनूपपुर, 26 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले की विश्व विख्यात पवित्र नगरी अमरकंटक में रविवार को तीन दिवसीय विश्व हिंदू परिषद का अखिल भारतीय युवा संत चिंतन वर्ग का शुभारंभ मृत्युंजय आश्रम में हुआ। इस अवसर पर श्रीराम दरबार व भारत माता की आरती उतारी गई। आयोजन में देशभर से पधारे संत, आचार्य और साधु-संतों ने सहभागिता कर रहें हैं। इस अवसर पर पूज्य संत नर्मदानंद बापू जी महाराज, विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार, संरक्षक दिनेश चंद्र मंचासीन रहे। संचालन परिषद के केंद्रीय मंत्री एवं धर्माचार्य संपर्क प्रमुख अशोक तिवारी ने किया।
उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए आलोक कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष और विश्व हिंदू परिषद की षष्टिपूर्ति (60 वर्ष) की इस यात्रा में यह सबसे बड़ा परिवर्तन आया है कि आज भारत का हर कोना यह कहने लगा है। हमें गर्व है कि हम हिंदू हैं।” उन्होंने कहा कि एक समय था जब अपने को हिंदू कहने में संकोच होता था, परंतु आज स्थिति बदल चुकी है। जब राम मंदिर आंदोलन हुआ, तब कारसेवकों ने अपने रक्त से ‘राम’ लिखा था। आज वही भक्ति और समर्पण हिंदुत्व की धड़कन बन गई है। मंदिर निर्माण के लिए 40 दिनों में 65 करोड़ लोगों ने जो योगदान दिया, वह हिंदू एकता की अभूतपूर्व मिसाल है।
उन्होंने कहा कि धर्मांतरण की बढ़ती प्रवृत्ति समाज के लिए चुनौती बनती जा रही है। विश्व हिंदू परिषद ने देशभर के 850 गाँवों को चिन्हित किया है, जहाँ धर्मांतरण की जड़ें फैल रही हैं। वहां सेवा, संस्कार और समर्पण से कार्य कर ‘घर वापसी’ का अभियान चलाया जाएगा।
सनातन समाज का एकत्व ही भारत की शक्ति- नर्मदानंद बापू महाराज
नर्मदानंद बापू महाराज ने संत समाज का आह्वान करते हुए कहा कि यह युवा संत चिंतन वर्ग, सनातन परंपरा के एकत्व का प्रतीक है। देश में बढ़ते ईसाईकरण और इस्लामीकरण के बीच यह आवश्यक है कि हम अपने धर्मांतरण से भटके हुए भाइयों को स्नेहपूर्वक वापस लाएं। समाज का पुनर्जागरण संतों के सामूहिक प्रयास से ही संभव है।
हिंदू संगठन की रीढ़ है संस्कार- दिनेश चंद्र
विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक दिनेश चंद्र ने परिषद की स्थापना और उसके उद्देश्य पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि देश स्वतंत्र हुआ, परंतु हिंदू समाज के मंदिर, साधु-संत, गौमाता और हमारी बहन-बेटियाँ सुरक्षित नहीं थीं। समाज में संगठन और संस्कार की आवश्यकता थी, इसी से 1964 में मुंबई के चिन्मयानंद आश्रम में विश्व हिंदू परिषद की स्थापना हुई। उन्होंने परिषद के बोधवाक्य ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ का स्मरण कराते हुए कहा कि धर्म की रक्षा से ही राष्ट्र की रक्षा संभव है। 1966 के प्रयागराज कुंभ में लिए गए संकल्प के अनुसार धर्मांतरण रोकना और घर वापसी को सामाजिक आंदोलन बनाना ही परिषद का मूल कार्य रहा है। इसके लिए संत समाज को शिक्षा के साथ संस्कार आधारित शिक्षण प्रणाली के पुनर्स्थापन का बीड़ा उठाना चाहिए। ईश्वर ने हमें विश्वकल्याण का दायित्व दिया है। जिस प्रकार शरीर की शक्ति उसकी रीढ़ में निहित है, उसी प्रकार विश्व की स्थिरता भारत की परंपरा में निहित है। भारत तब ही सशक्त होगा जब उसका सनातन धर्म सशक्त होगा। उन्होंने कहा कि अमरकंटक की पावन वादियों में तीन दिनों तक चलने वाला यह युवा संत चिंतन वर्ग केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय आत्मा की पुकार है। यह वह स्थान बन गया है, जहाँ राष्ट्रधर्म, संस्कृति और अध्यात्म के दीप एक साथ प्रज्वलित होकर कह रहे हैं कि जो अपने धर्म की रक्षा करेगा, वही भारत का भविष्य गढ़ेगा।
(Udaipur Kiran) / राजेश शुक्ला
