
अनूपपुर, 27 जून (Udaipur Kiran) । शिक्षा विभाग के जिम्मेदार जिले की बोर्ड परीक्षाओं के परिणामों पर भले ही क्यों न अपनी पीठ थपथपाए, लेकिन शिक्षा का स्तर न्यून है से इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि जिले में जिस स्तर से स्कूलों का उन्नयनीकरण हुआ, उस गति से जिम्मेदारों ने शिक्षकों की पदस्थापना नहीं की। दर्जनों ऐसे स्कूल हैं जहां कक्षाओं से अधिक शिक्षक पदस्थ हैं, तो कहीं कक्षाओं के अनुपात से भी कम शिक्षक है। इन्हीं स्कूलों में जिले का शासकीय हाईस्कूल भालूमाड़ा एक है, जिसके उन्नयन के बाद आजतक न तो शिक्षक की पदस्थापना हुई और ना ही हाईस्कूल की कक्षाएं संचालित हुई।
पिछले 8 वर्षों के दौरान बिना शिक्षक और शिक्षा संचालित हो रही हैं। यहां पढ़ने वाले बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने में शिक्षा से सम्बंधित तीनों विभाग के अधिकारियों के साथ जिला प्रशासन भी उतना ही दोषी माना जा सकता है? यह तो जांच का विषय है कि आखिर यहां बिना शिक्षक के कक्षाओं का संचालन और बच्चों की उपस्थिति कैसे लगी। बच्चों के बोर्ड परीक्षाओं की तैयारियां कैसे कराई गई? क्या यहां सबकुछ हवा हवाई कागजों पर शासन प्रशासन को भ्रामक जानकारियां दी गई? क्या जिला प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं थी? यह तो सरासर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ रहा?।
वर्ष 1955 से प्राथमिक स्कूल के रूप में संचालित हुई और बाद में माध्यमिक कक्षाओं के साथ शासकीय माध्यमिक स्कूल भालूमाड़ा एकीकृत शालासिकीय हाईस्कूल भालमाड़ा का संचालन हो रहा था। लेकिन यहां हाईस्कूल जैसी कोई भी संस्था नहीं थी, जिसके कारण विद्यार्थियों को 10 किलोमीटर दूर कोतमा या दारसागर जाना पड़ता है। इसे देखते हुए शासन स्तर पर हाईस्कूल के लिए इसी शासकीय माध्यमिक स्कूल भालूमाड़ा का उन्नयन शासकीय हाईस्कूल भालूमाड़ा में किया गया था। लेकिन यहां भी जिम्मेदारों ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई।
2 प्राथमिक शिक्षकों के भरोसे 10 कक्षा
1 जुलाई से शासकीय स्कूलों में स्कूल चले अभियान प्रारंभ हो जाएगा, जहां स्कूलों का नया सत्र संचालित होगा। लेकिन भालूमाड़ा हाईस्कूल को इसका लाभ नहीं मिल पाएगा। क्योंकि शासकीय हाईस्कूल भालूमाड़ा में कक्षा 1 से 10 तक की 10 कक्षाओं के लिए वर्तमान में प्राथमिक स्कूल के दो शिक्षक पदस्थ है। मिडिल स्कूल के लिए यहां उपलब्ध रहीं 1 शिक्षिका सेवानिर्वत हो गया है, वहीं कक्षा 9वीं और 10वीं के लिए कभी शिक्षक ही पदस्थ नहीं हो सकी। यानी अब 10 कक्षाओं की जिम्मेदारी मात्र 2 शिक्षकों पर हैं। यहां बच्चों का नामांकरण के साथ विभागीय जानकारी का काम और कक्षाओं में मौजूद बच्चों को कैसे पढ़ाया जाए चिंता का विषय बना हुआ है।
सरकारी सिस्टम की उदासीनता या अनदेखी
भालूमाड़ा में कुछ निजी स्कूल भी हैं, जहां हाईस्कूल तक की शिक्षा मुहैया कराई जाती है, लेकिन गरीब बच्चों के लिए यह संस्थान उनकी जेबों पर भारी है। जिसके कारण भालूमाड़ा हाईस्कूल ही ऐसे बच्चों के उच्च शिक्षा का एक मात्र स्थली है। बावजूद इसे सरकारी सिस्टम की उदासीनता कहा जाय या अनदेखी कि 8 साल पहले जिस माध्यमिक स्कूल को हाई स्कूल में उन्नयन किया गया, अब तक एक भी शिक्षक का पद स्वीकृत नहीं किया गया है। ना ही भवन का निर्माण कराया गया है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि कहीं भालूमाडा हाई स्कूल को बंद करने का खेल तो नहीं है। जब 8 साल पहले स्कूल का उन्नयन हुआ, कक्षा 9-10 की कक्षाएं संचालित हुई और बच्चे 9वीं, 10वीं की परीक्षा पास होकर दूसरी स्कूलों में जा रहे हैं। तो फिर सवाल उठता है कि पिछले 7 सालों में जिस स्कूल में शिक्षक नहीं है उस स्कूल के बच्चे कैसे अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं?।
(Udaipur Kiran) / राजेश शुक्ला
