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कृत्रिम गर्भाधान तकनीक एवं त्वरित नस्ल सुधार कार्यक्रम से लाभान्वित हो रहे पशुपालक

उन्नत नस्ल की गाय के साथ भुपिंदर सिंह।

मंडी, 14 सितंबर (Udaipur Kiran) । पशुपालन विभाग द्वारा चलाए जा रहे त्वरित नस्ल सुधार कार्यक्रम एक्सेलरेटेड ब्रीड इम्प्रूवमेंट प्रोग्राम के अंतर्गत लिंग वर्गीकृत वीर्य सेक्स-सार्टेड सीमेन तकनीक के माध्यम से कृत्रिम गर्भाधान के क्षेत्र में सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। इससे बछियों की जन्म दर बढ़ने से दुग्ध उत्पादकों को लाभ सुनिश्चित हो रहा है।

वर्तमान में देश व प्रदेश में बछड़ों व बैलों की संख्या बढ़ रही है, जबकि खेतों में उनके उपयोग की आवश्यकता न्यूनतम रह गई है। इससे यह पशु अनुपयोगी होकर सड़कों पर बेसहारा घूमते हैं, जो दुर्घटनाओं का कारण भी बनते हैं। ऐसे में मादा पशुओं की संख्या में वृद्धि होने से इन बेसहारा गायों को आश्रय भी मिल सकेगा। इसके लिए पशुपालन विभाग लिंग वर्गीकृत वीर्य तकनीक का उपयोग कर बछड़ों की तुलना में बछियों की जन्म दर बढ़ाने के प्रयास कर रहा है।

मंडी जिले के सरकाघाट के उपमंडलीय पशु चिकित्सालय सरकाघाट के प्रभारी चिकित्सक डॉ. राजिंदर सिंह जस्वाल ने बताया कि इस तकनीक के अंतर्गत वीर्य से वाई क्रोमोसोम को अलग कर केवल एक्स-एक्स क्रोमोसोम का उपयोग किया जाता है, जिससे बछिया पैदा होने की संभावनाएं 90 से 95 प्रतिशत तक होती है। इस तकनीक के विस्तार से उन्नत नस्ल की बछियों की संख्या बढ़ रही है, जिससे दुग्ध उत्पादन में भी वृद्धि हो रही है। कार्यक्रम के अंतर्गत मात्र 250 रूपए में दो टीके उपलब्ध करवाए जाते हैं। यदि पहले टीके से गर्भधारण नहीं हो पाता है तो दूसरा टीका निःशुल्क लगाया जाता है। यदि दोनों टीकों के बाद भी बछिया न पैदा हो और दोनों बार बछड़ा ही हो, तो 250 रूपए की राशि वापस कर दी जाती है। यदि दूसरे टीके के बाद बछड़ा पैदा हो, तो 125 रूपए यानी 50 प्रतिशत राशि वापस की जाती है।

उपमंडलीय पशु चिकित्सालय सरकाघाट में जर्सी, होल्सटीन, साहिवाल और गिर नस्ल की गायों के लिए लिंग वर्गीकृत वीर्य उपलब्ध है। अब तक यहां 603 गायों को यह टीका लगाया जा चुका है। सरकाघाट उपमंडल के गांव अल्याणा डाकघर रोपड़ी के भुपिंदर सिंह ने बताया कि वे 22 गायों का पालन करते हैं। उन्होंने पशु चिकित्सालय सरकाघाट से अपनी 8 गायों को यह टीका लगवाया था। इनमें से 6 ने बछियों को जन्म दिया, जबकि एक गाय ने बछड़े को जन्म दिया।

भुपिंदर ने बताया कि उन्होंने अप्रैल, 2023 से इस क्षेत्र में कार्य शुरू किया। इसके लिए उन्होंने राजस्थान से 5 साहिवाल नस्ल की गायें खरीदी थीं। इसके बाद जैसे-जैसे कार्य ने गति पकड़ी तो जरूरत के अनुसार फिर हरियाणा से साहिवाल क्रॉस नस्ल, जबकि गुजरात से गिर साहिवाल नस्ल की गाय खरीदी। वर्तमान में उनकी 10 गायों को यह टीका लगाया गया है, जिनमें से 6 गर्भवती हो चुकी हैं और 4 के गर्भधारण की पुष्टि शेष है।

उन्होंने कहा कि आज के समय में खेती में बैलों का प्रयोग न के बराबर रह गया है और अधिकतर लोग ट्रैक्टर तथा अन्य मशीनों का उपयोग कर रहे हैं। ऐसे में बछड़ों को लोग कई बार बेसहारा छोड़ देते हैं। इसके विपरीत यह तकनीक पशुपालकों को न केवल आर्थिक रूप से सशक्त बना रही है, बल्कि निराश्रित पशुओं की समस्या का भी समाधान कर रही है।

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(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा

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