
रीवा, 26 जुलाई (Udaipur Kiran) । सनातन परंपरा में सबसे पहले भगवान शिव की प्रतिमा का शिवलिंग के रूप में जिन मंदिरों का उल्लेख इतिहास में सबसे पहले मिलता है, उनमें से दो मंदिर विन्ध्य क्षेत्र में स्थित हैं। सतना जिले के बैजनाथ का शिव मंदिर और नागौद के समीप पन्ना जिले के चहुंमुख नाथ मंदिर के सामने बना पार्वती मंदिर प्राचीनतम मंदिर हैं। भगवान शिव का वास हिमालय और घनघोर वन क्षेत्रों में माना जाता है।
रीवा में आज (शनिवार) से दो दिवसीय रीजनल टूरिज्म कॉन्क्लेव हो रही है। विन्ध्य क्षेत्र भी सदैव से दुर्गम पर्वतों, नदियों, घने वनों, से आच्छादित प्रदेश रहा है। संभवत: इसी कारण पूरे विन्ध्य क्षेत्र में कई प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं। इन शिव मंदिरों से जुड़ी अनेक दंत कथाएं आज भी प्रचलित हैं। पूरा विन्ध्य प्रदेश भगवान शिव की आध्यत्मिक ऊर्जा का प्रस्फुटन केन्द्र है। विन्ध्य की धरा में प्राचीनतम शिव मंदिर आज भी भक्ति और आस्था का केन्द्र बनकर आध्यात्मिक ऊर्जा केन्द्रों के रूप में सुविख्यात हैं। विन्ध्य में भगवान शिव की विशेष कृपा दृष्टिगत होती है।
सतना जिले के नागौद कस्बे के समीप पन्ना जिले के नचने गांव में भगवान शिव की चारमुखी प्रतिमा चहुंमुखनाथ मंदिर में स्थापित है। लगभग 1200 वर्ष पूर्व का यह मंदिर अपनी बुंदेली स्थापत्य कला और अद्भुत प्रतिमा के कारण विख्यात है। इसमें एक ही पत्थर में भगवान शिव के अलग-अलग चार भागों के चार शीष दिखाई दे रहे हैं। इसके सामने ही पार्वती मंदिर है जिसमे अब प्रतिमा विद्यमान नहीं है। इसे प्राचीनतम मंदिर माना जाता है। रीवा में बघेल राजवंश के किला परिसर में स्थित भगवान महामृत्युंजय शिव मंदिर आस्था का केन्द्र है। इसका निर्माण बघेलवंश के राजा भाव सिंह ने कराया था। यह शिवलिंग भगवान शिव के सहस्त्र नेत्रों वाला है। इस प्रतिमा के बारे में विश्वास है कि भगवान महामृत्युंजय के दर्शन से अकाल मृत्यु भी टल जाती है। सावन माह में यहाँ प्रतिदिन हजारों भक्त यहाँ दर्शन करने पहुंचते हैं।
सतना जिले के बिरसिंहपुर कस्बे में भगवान शिव गैवीनाथ के रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर के संबंध में किवदंती है कि यहाँ खण्डित शिवलिंग गैवी यादव नाम के व्यक्ति के घर में प्रकट हुए जिसके कारण इनका नाम गैवीनाथ हो गया है। इस शिवलिंग को औरंगजेब और उसके सिपाहियों ने भग्न करने का प्रयास किया, लेकिन अचानक हजारों मधुमक्खियों के हमले के कारण उन्हें भागना पड़ा। इसे भगवान गैवीनाथ का चमत्कार माना जाता है। सीधी जिले में ग्राम बढ़ौरा में भी भूमि से स्वयं प्रकट हुए चतुष्कोणीय भगवान बढ़ौरानाथ शिवलिंग है। इस शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि इनका आकार धीरे-धीरे बढ़ रहा है। यह शिवलिंग अन्य शिवलिंगों से एकदम अलग दिखाई देता है। भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट में मत्स्य गजेन्द्रनाथ शिव मंदिर है। यहाँ भगवान शिव के साथ ब्राम्हा जी और विष्णु भी विराजमान हैं। इस मंदिर के बारे में किवदंती है कि इसका निर्माण स्वयं ब्राम्हा जी ने किया था और शिवलिंग की स्थापना की थी। रीवा जिले के गुढ़ कस्बे में भी नदी के किनारे भगवान शिव कष्टहरनाथ शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इसमें दोपहर के समय शिवलिंग के अंदर ही एक अन्य शिवलिंग की आभा दिखाई देती है। मंदिर में सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है।
विन्ध्य की धरा में मऊगंज जिले के देवतालाब शिव मंदिर का विशिष्ट स्थान है। कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने केवल एक रात में एक ही पत्थर से शिवमंदिर का निर्माण किया था। रीवा-बनारस हाइवे पर स्थित देवतालाब शिवमंदिर में साल भर भक्तों की भीड़ रहती है। विन्ध्य में परंपरा रही है कि बद्रीनारायण और चारोधाम की यात्रा का फल तभी मिलता है जब देवतालाब में भगवान शिव के दर्शन किए जाएं। यहाँ चारोधाम यात्रा के बाद भी लोग देवतालाब अवश्य जाते हैं। माँ नर्मदा और सोन के उद्गम स्थल अमरकंटक में भगवान शिव जालेश्वर महादेव के रूप में विराजे हैं। यह स्थान नर्मदा मंदिर से लगभग सात किलोमीटर दूर है।
जालेश्वर महादेव मंदिर के समीप स्थित कुण्ड से जुहिला नदी निकलती है। नर्मदा कुण्ड से जल लेकर पूरे सावन माह बड़ी संख्या में लोग जालेश्वर महादेव का अभिषेक करते हैं। सीधी जिले में सोन और बनास नदी के संगम स्थल भंवरसेन के समीप ग्राम चंदरेह में तीसरी शताब्दी का शिवमंदिर है। यहाँ भगवान शिव प्राचीन रूप में विराजे हैं। मंदिर की कुर्सी और शिखर भी शिवलिंग के आकार के हैं। इसका निर्माण कल्चुरि राजाओं द्वारा कराया गया था। इसके समीप बौद्ध मठ के भी अवशेष हैं। इस स्थान को महाकवि बाणभट्ट की जन्मस्थली के रूप में भी जाना जाता है। इसके साथ-साथ कालिंजर किले में नीलकंठेश्वर शिवमंदिर , खजुराहो जिला छतरपुर में मतंगेश्वर शिवमंदिर, सीधी जिले के बहरी के समीप नीलकंठ शिवमंदिर सहित अनेक छोटे-बड़े शिवमंदिर विन्ध्य में हैं।
(Udaipur Kiran) तोमर
