Uttar Pradesh

महाभारतकालीन स्थल अहिच्छत्र के विकास के लिए 2 करोड़ की राशि स्वीकृत

पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह

23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ को यहीं मिला था कैवल्य ज्ञान

धार्मिक पर्यटन विकास हमारी प्राथमिकता : जयवीर सिंह

लखनऊ, 06 सितंबर (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग महाभारत सर्किट अंतर्गत बरेली जिला स्थित पौराणिक स्थल अहिच्छत्र के पर्यटन विकास की महत्वाकांक्षी योजना को मंजूरी दी है। महाभारत कालीन और जैन धर्मावलंबियों के पवित्र स्थल अहिच्छत्र के समेकित पर्यटन विकास कार्य के लिए 2 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत हुई है। राज्य सरकार यह कदम बरेली को धार्मिक पर्यटन के मानचित्र पर सशक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह जानकारी उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने दी।

पर्यटन मंत्री ने कहा कि ‘उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग प्रदेश के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व वाले स्थलों के आसपास पर्यटक सुविधाओं का तेजी से विकास कर रहा है। उन्होंने बताया कि प्राचीन स्थल अहिच्छत्र का विशेष धार्मिक महत्व है। द्वापर युग (महाभारत काल) के बाद अहिच्छत्र पर गुप्त, पाल एवं सेन राजाओं का भी शासन रहा। हर बदलते दौर में अहिच्छत्र का वैभव कायम रहा। इसी दृष्टिकोण से पौराणिक भूमि को पर्यटन के लिहाज से विकसित किया जा रहा है।’

पर्यटन विकास से संवरेगा अहिच्छत्र

पर्यटन विभाग अहिच्छत्र के समेकित विकास के माध्यम से बरेली को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर विशिष्ट पहचान दिलाने का महत्वपूर्ण प्रयास कर रहा है। पर्यटन विकास के अंतर्गत प्रवेश द्वार, सौंदर्यीकरण, प्रकाश व्यवस्था, शौचालय, सूचना केंद्र, पेयजल व्यवस्था, विश्राम स्थल का निर्माण आदि सुविधाएं विकसित की जाएंगी।

महाभारत कालीन अहिच्छत्र का किला

पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह ने बताया, ‘अहिच्छत्र को महाभारत में वर्णित उत्तरी पांचाल प्रदेश की राजधानी कहा जाता था। बरेली मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर आंवला तहसील के रामनगर में महाभारत कालीन अहिच्छत्र का किला है। यह विशाल किला उस दौर के वैभव और विकास का साक्षी है। यहां की वास्तुकला आगंतुकों को लुभाती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) ने अहिच्छत्र को संरक्षित किया है।’

19वीं-20वीं सदी में हुई पुरातात्विक खुदाई

अहिच्छत्र में 19वीं और 20वीं सदी में पुरातात्विक खुदाई होती रही। अवशेषों से पता चलता है कि अहिच्छत्र प्राचीन समय में एक समृद्ध व्यावसायिक केंद्र था। ब्रिटिश शासनकाल से लेकर वर्तमान समय तक हुई खुदाई में कई बेशकीमती चीजें प्राप्त हुई, जो देश के अलग-अलग संग्रहालयों में रखे गए हैं।

जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ को यहीं प्राप्त हुआ ज्ञान

जैन धर्मावलंबियों के लिए अहिच्छत्र महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहां 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति की थी। अनुश्रुतियों के अनुसार पार्श्वनाथ यहां विहार के दौरान आए थे। वर्तमान में बड़ी संख्या में जैन अनुयायी इस पवित्र स्थल की यात्रा के लिए आते हैं।

अहिच्छत्र में भगवान बुद्ध ने दिए थे उपदेश

अहिच्छत्र हिन्दू, जैन के साथ बौद्ध अनुयायियों के लिए भी महत्वपूर्ण स्थल है। कहा जाता है अहिच्छत्र में भगवान बुद्ध आए थे। यहां उन्होंने नाग राजाओं को धर्म की दीक्षा दी थी। इस दौरान बुद्ध ने अहिच्छत्र में सात दिन बिताए थे। समय के साथ यह नगर बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हुआ। तत्पश्चात, मौर्य शासक सम्राट अशोक ने अहिच्छत्र में कई बौद्ध स्तूपों का निर्माण करवाया था। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रा विवरण में अहिच्छत्र में बड़े बौद्ध विहारों का उल्लेख किया है।

पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने कहा, ‘धार्मिक पर्यटन में उत्तर प्रदेश निरंतर आगे बढ़ रहा है। बरेली अपनी प्राचीन और पौराणिकता स्थलों के लिए विख्यात है। जनपद में सभी धर्मों से जुड़े पवित्र स्थल हैं। सरकार का प्रयास है कि इन स्थलों को विश्व पर्यटन मानचित्र पर और अधिक सशक्त तरीके से स्थापित किया जाए, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश की पहचान एक प्रमुख पर्यटन गंतव्य के रूप में मजबूत हो सके।’————-

(Udaipur Kiran) / बृजनंदन

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