
— जनश्रुति है कि इसी दिन सतयुग का हुआ था आरंभ
वाराणसी, 29 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी काशी (वाराणसी)में गुरुवार को पारंपरिक श्रद्धा और उल्लास के साथ अक्षय नवमी पर्व मनाया जाएगा। कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाए जाने वाला यह पर्व धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अनंत पुण्यफल देने वाला होता है। इस दिन श्रद्धालु आंवले के वृक्ष का विधिवत पूजन करेंगे और उसके नीचे अहरा (गोहरी) पर भोजन बनाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करेंगे।
पौराणिक मान्यता है कि अक्षय नवमी के दिन भगवान विष्णु ने आंवले के वृक्ष में निवास किया था। इसलिए इस वृक्ष की पूजा को अत्यंत शुभ माना गया है। कहा जाता है कि इस दिन किए गए दान, जप, तप और पूजा के फल कभी क्षीण नहीं होते, इसलिए इसे “अक्षय” नवमी कहा जाता है।
ज्योतिषाचार्य रविन्द्र तिवारी के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना करने से जीवन में समृद्धि, सौभाग्य और धर्म की स्थिरता आती है। वहीं धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि इसी तिथि को सतयुग का आरंभ हुआ था, अतः यह दिवस सत्य, धर्म और नए युग की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।
इस अवसर पर स्नान, व्रत, पूजा और दान का विशेष महत्व बताया गया है। श्रद्धालु प्रातःकाल स्नान के बाद आंवले के वृक्ष की पूजा-अर्चना कर फल, पुष्प और दीप अर्पित करेंगे। इसके बाद वृक्ष के नीचे परिवार सहित भोजन कर प्रसाद का वितरण किया जाएगा। सामाजिक कार्यकर्ता एवं पत्रकार रामयश मिश्र ने बताया कि आज शहरों में तेजी से घटते पेड़-पौधों के बीच पूजा के लिए आंवले के वृक्ष मिलना कठिन हो गया है। उन्होंने कहा िक काशी जैसी धार्मिक नगरी में यदि हम पौधरोपण को संकल्प के रूप में अपनाएं तो शहर फिर से आनंद-कानन वन की तरह हरियाली से आच्छादित हो सकता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2006 में अस्सी स्थित गोयनका संस्कृत पाठशाला परिसर में सिद्धेश्वर महादेव मंदिर के पास उन्होंने आंवले का पौधा रोपा था। वर्षों की देखभाल और समर्पण के बाद अब वह पौधा एक विशाल वृक्ष बन चुका है। गुरुवार को अक्षय नवमी के अवसर पर इसी वृक्ष के नीचे श्रद्धालु पूजा-अर्चना और भोजन का आयोजन करेंगे। उन्होंने बताया कि अक्षय नवमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति संरक्षण और आध्यात्मिक समृद्धि का भी संदेश देती है।
(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
