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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दी पॉक्सो दोषी को जमानत

इलाहाबाद हाईकाेर्ट

–’आपराधिकता खत्म हो चुकी है’, पीड़िता से शादी और बच्चा है

प्रयागराज, 05 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद ने पॉक्सो अधिनियम के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को जमानत दे दी। हाईकोर्ट ने जमानत यह देखते हुए दी कि आवेदक ने पीड़िता से विवाह किया था और वे दोनों पति-पत्नी के रूप में साथ रह रहे थे, तथा उनके विवाह से एक बच्चा भी था।

यद्यपि न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा की पीठ ने यह टिप्पणी की कि दोषी का कृत्य “न केवल अवैध था, बल्कि अनैतिक भी था“। कोर्ट ने कहा कि “आवेदक अपीलकर्ता द्वारा किया गया कोई भी अपराध, बाद के घटनाक्रमों, जिसमें पक्षों के बीच विवाह और उनके पुत्र का जन्म शामिल है,उसको देखते हुए समाप्त हो गया है।“

मामले के अनुसार आरोपी मयंक उर्फ रामशरण को दिसम्बर 2024 में विशेष पॉक्सो कोर्ट, फिरोजाबाद द्वारा धारा 376 आईपीसी और धारा 5(जे)(ii)/6 पॉक्सो अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया और 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि अपराध तब हुआ जब पीड़िता (जो अब आरोपी की पत्नी है) की आयु 18 वर्ष से कम थी। हालांकि, ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही के लम्बित रहने के दौरान, आवेदक-अपीलकर्ता ने हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार पीड़िता के साथ विवाह कर लिया।

इसके बाद दोनों पति-पत्नी की तरह रहने लगे और अभियोक्ता ने एक बच्चे को भी जन्म दिया। हालांकि, दिसम्बर 2024 में ट्रायल कोर्ट ने उसे दोषी करार दिया। अब, कोर्ट के समक्ष, अभियुक्त के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि पीड़िता अपीलकर्ता की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी बन गई थी, इसलिए ट्रायल कोर्ट ने उसे दोषी ठहराने में गलती की थी। अपने तर्कों के समर्थन में अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसलों का हवाला दिया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने इस आधार पर अभियुक्त के आपराधिक अभियोजन को रद्द कर दिया था कि अभियुक्त ने अभियोक्ता के साथ विवाह किया था।

तर्क दिया गया कि चूंकि अपील प्रथम दृष्टया स्वीकार किए जाने योग्य है, इसलिए कानून के अनुसार, आवेदक-अपीलकर्ता को मुकदमा लम्बित रहने के दौरान जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। दूसरी ओर राज्य की ओर से तर्क दिया गया कि अभियुक्त को न्यायालय द्वारा कोई छूट नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि घटना की तिथि पर पीड़िता पाक्सो कानून में परिभाषित बालक शब्द के अर्थ में बालक थी, और इस प्रकार, वह दण्डित किये जाने योग्य था।

हाईकोर्ट ने वकीलों के दलीलों की पृष्ठभूमि में कहा कि यद्यपि अपराध “न केवल अवैध था, बल्कि अनैतिक भी था”, तथापि यह साक्ष्य के रूप में आया कि उसने मुकदमा लम्बित रहने के दौरान आवेदक-अपीलकर्ता के साथ विवाह कर लिया था। इस कारण आवेदक द्वारा किया गया कोई भी अपराध, यदि कोई हो, समाप्त हो गया है।“

न्यायालय ने यह भी कहा कि दम्पति को विवाह से एक पुत्र है और वे एक खुशहाल परिवार के रूप में रह रहे हैं। कोर्ट ने सजा के निलम्बन-जमानत के लिए उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने अंतरिम राहत के रूप में निर्देश दिया कि अगले आदेश तक, ट्रायल कोर्ट द्वारा फैसले में दिए गए जुर्माने की वसूली पर रोक रहेगी।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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