Uttrakhand

नैनी झील में डेढ़ दशक बाद फिर खतरनाक मांगुर मछली मिली, सनसनी

नैनी झील में मांगुर मछली।

नैनीताल, 29 जून (Udaipur Kiran) । नैनीझील में लगभग डेढ़ दशक के बाद एक बार फिर अज्ञात कारणों ने खतरनाक एवं प्रतिबंधित मांसाहारी मांगुर प्रजाति की मछली देखे जाने के दावे किये जा रहे हैं। इससे झील के पारिस्थितिक तंत्र पर गहरा संकट उत्पन्न गया है, वहीं इस जानकारी से नगर के पारिस्थितिकी तंत्र पर नजर रखने वाले लोगों में सनसनी भी फैल गयी है। यह भी जांच का विषय है कि यह नैनी झील में कैसे आयी अथवा किसने डाली।

प्राप्त जानकारी के अनुसार गत दिवस नैनी झील के एरिएशन केंद्र के प्रोजेक्ट मैनेजर आनंद सिंह कोरंगा ने नैनी झील में मांगुर मछली को देखा और इसकी सूचना जिला विकास प्राधिकरण के सचिव विजय नाथ शुक्ल एवं पंतनगर विश्वविद्यालय के मत्स्य विभाग के अधिकारियों को दी। इसके बाद श्री शुक्ल ने पंतनगर विश्वविद्यालय के मत्स्य विभाग के अधिकारियों को पत्र लिखकर मांगुर प्रजाति की मछलियों को झील से निकालने के लिये पत्र लिखा है। वहीं प्राधिकरण के अध्यक्ष एवं कुमाऊं मंडल के आयुक्त दीपक रावत ने इस संबंध में मत्स्य विभाग से नैनी झील में इस बारे में सर्वेक्षण कराने की बात कही है।

2008-09 में नैनी झील में डाली गई भी मांगुर मछलियां

नैनीताल। इससे पूर्व 2008-09 में नैनी झील में मांगुर मछलियों को डाले जाने का मामला सुर्खियों में रहा था। बताया गया था कि एक समुदाय के व्यक्ति ने धार्मिक मान्यता के कारण अपनी बीमार मां के स्वस्थ होने की कामना के साथ झील में मांगुर प्रजाति की मछलियां डाली थीं। जिन्हें सूचना मिलने पर निकाला गया था। तब चर्चा थी कि कुछ मछलियां झील में ही रह गयी हैं, हालांकि तब से इन्हें झील में देखे जाने की कोई सूचना नहीं आयी।

एनजीटी से प्रतिबंधित है थाइलेंड मूल की मांगुर मछलियां

थाइलेंड मूल की मांगुर मछलियों को वैज्ञानिक रूप से क्लेरियस गैरीपिनस कहा जाता है। यह कैटफिश समूह की एक मांसाहारी मछली है। यह हवा में सांस लेने, सूखी भूमि पर भी चलने तथा कीचड़ में जीवित रहने की क्षमता रखती है। इसकी लंबाई 3 से 5 फुट तक हो सकती है। यह स्थानीय जलचर प्रजातियों के लिए अत्यंत आक्रामक मानी जाती है। भारत में इसकी खेती वर्ष 2000 से प्रतिबंधित है क्योंकि यह देशी मछलियों की 70 प्रतिशत तक कमी के लिए जिम्मेदार पाई गई है। क्योंकि यह उन्हें खा जाती है। यह मांस भी खा जाती है, इसलिये इसके पालन में सड़े मांस का उपयोग किया जाता है, जिससे जल प्रदूषण और पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर क्षति पहुंचती है। इस कारण राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने इसे स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए खतरनाक मानते हुए इसकी खेती पर रोक लगा दी है। यह भी कहा जाता है कि यह काफी तेजी से प्रजनन कर अपनी संख्या बढ़ाती है, और काफी तेजी से बढ़ती है। ऐसे में यह भी आशंका जतायी जाती है कि यह नैनी झील जैसी झीलों में जलक्रीड़ा करते हुए पानी में हाथ डालने वाले लोगों को अचानक हथ से पकड़कर पानी में खींच सकती है और झील में किसी के डूबने पर उसके शव को भी खा सकती है। इसके शरीर में शीशा व आर्सनिक जैसे खतरनाक रसायन भी मौजूद होते हैं, जिस कारण यह झील के पानी को गंभीर स्तर तक प्रदूषित कर सकती है।

(Udaipur Kiran) / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी

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