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34 साल बाद मर्डर के दो आरोपी हाईकोर्ट से बरी : आजीवन कारावास की सजा रद्द

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जोधपुर, 10 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । राजस्थान हाईकोर्ट ने 34 साल पुराने हत्या के एक मामले में दो आरोपियों को बरी कर दिया है। जस्टिस मनोज कुमार गर्ग और जस्टिस रवि चिरानिया की खंडपीठ ने अपने रिपोर्टेबल जजमेंट में पाया कि इस केस के दो गवाहों ने फेक एविडेंस प्लांट किए और पुलिस ने जांच में गड़बड़ की। हाईकोर्ट ने जयमलराम और भगवानाराम को सेशन कोर्ट हनुमानगढ़ द्वारा 29 साल पहले 18 जनवरी 1996 को दी गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया। कोर्ट ने अपने विस्तृत फैसले में एविडेंस प्लांटिंग, गवाहों के बयान में गंभीर विरोधाभास और जांच अधिकारी के संदिग्ध आचरण को आधार बनाते हुए ट्रायल कोर्ट के निर्णय को खारिज किया।

मामला हनुमानगढ़ के डिबी थाना का है, जहां 22 सितंबर 1991 को राजाराम पुत्र बीरबलराम ने एफआईआर दर्ज दर्ज करवाई। उसमें बताया गया कि हरिराम के खेत के कच्चे खाले (तालाब) के पास एक अज्ञात व्यक्ति की लाश पड़ी है, जिसके गले पर रगड़ का निशान था। सूचनाकर्ता ने राजाराम नायक और भानीराम से मिली जानकारी के आधार पर जयमल पुत्र हरिराम कुम्हार और भगवानिया नायक को आरोपी बताया था। मामले में पुलिस ने जयमल और भगवानाराम को गिरफ्तार कर दोनों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया। अभियोजन पक्ष ने 16 गवाह पेश किए और 40 दस्तावेज साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किए। इसमें हनुमानगढ़ की सेशन कोर्ट ने 18 जनवरी 1996 को दोनों आरोपियों को आजीवन कारावास व जुर्माना की सजा सुनाई।

पांच प्रमुख गवाह पक्षद्रोही घोषित

आरोपियों के वकील आरडीएसएस खरलिया और किंजल पुरोहित ने कोर्ट में तर्क दिया कि गवाह राजाराम नायक और बृजलाल, जिन्होंने कथित रूप से घटना देखी थी, ने अपने बयान में पूरी तरह इनकार कर दिया। बृजलाल ने स्पष्ट रूप से कहा मैंने हरिराम के खेत के खाले के पास कोई लाश किसी व्यक्ति की नहीं देखी थी। इस मामले में अभियोजन पक्ष द्वारा कुल 5 महत्वपूर्ण गवाहों को पक्षद्रोही घोषित किया गया। सबसे गंभीर खुलासा यह हुआ कि सूचनाकर्ता राजाराम ने अपने क्रॉस एक्जामिनेशन में कहा कि जयचंद और नारायणसिंह घटना के 2-3 दिन बाद उसके पास आए और कहा कि वे कुम्हार समाज के नेता हैं और गवाह बनना चाहते हैं। राजाराम ने स्पष्ट रूप से कहा कि जब ये दोनों गवाह उसके पास आए, तब वे एक थैला लेकर आए थे, जिसमें कैमरा था और कह रहे थे कि थाने में पेश करना है। लेकिन जांच अधिकारी अतर सिंह ने इस बात से इनकार किया कि नारायण सिंह और जयचंद कैमरा लेकर पहले राजाराम के पास गए। यह गंभीर विरोधाभास है, जो साबित करता है कि एविडेंस प्लांट किया गया था।

बरामदगी में भी विरोधाभास

केस में कैमरा की बरामदगी के लिए बरामदगी मेमो तैयार किया गया, जिसमें नेमीचंद और नारायण सिंह को गवाह बनाया गया, लेकिन नेमीचंद को अभियोजन पक्ष द्वारा साक्ष्य में इन्हें पेश नहीं किया गया। इसी तरह, घड़ी की बरामदगी के लिए गवाह श्रवण कुमार और गोविंदराम को भी पेश नहीं किया गया। हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता ने स्वीकार किया कि वह प्रत्यक्षदर्शी नहीं है। इसी तरह, दो गवाहों ने घटना से इनकार कर दिया, इसलिए एफआईआर में आरोपियों को नामजद करने का आधार ही समाप्त हो जाता है। कोर्ट ने कहा कि गवाह जयचंद व नारायणसिंह ने जाति के नेता होने के नाते जानबूझकर सक्रिय भूमिका निभाई और आरोपियों को फंसाने के लिए एविडेंस प्लांट किया। शिकायतकर्ता के क्रॉस एक्जामिनेशन से स्पष्ट है कि ये दोनों कैमरा लेकर आए थे। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे आरोपियों के खिलाफ आरोप सिद्ध करने में विफल रहा। गवाहों के बयानों में विरोधाभास हैं। परिणामस्वरूप, 18 जनवरी 1996 के ट्रायल कोर्ट के निर्णय को रद्द किया गया। आरोपी पहले से जमानत पर थे और उनके जमानत बांड को डिस्चार्ज कर दिया गया।

(Udaipur Kiran) / सतीश

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