HEADLINES

डमी स्कूल शिक्षा प्रणाली के लिए कलंक, एसआईटी निरीक्षण कर करे कार्रवाई-हाईकोर्ट

हाईकाेर्ट

जयपुर, 18 सितंबर (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि डमी स्कूल भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए कलंक है और इन स्कूलों का प्रसार शिक्षा व्यवस्था के लिए गहरे संकट का संकेत है। इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार और सभी शिक्षा बोर्ड को कहा है कि वे एसआईटी गठित कर स्कूलों और कोचिंग संस्थानों का आकस्मिक निरीक्षण करें। इस दौरान यदि विद्यार्थी स्कूल में गैर हाजिर है और उसी समय कोचिंग सेंटर में पढ़ रहा है तो दोनों संस्थानों पर कार्रवाई करे। अदालत ने कहा कि सीबीएसई और राजस्थान बोर्ड मान्यता प्राप्त स्कूलों का निरीक्षण करें और यदि वहां शिक्षक व छात्रों की उपस्थिति कम मिले तो उन पर कार्रवाई के साथ ही स्कूल की मान्यता समाप्त करने को लिए आदेश जारी किए जाए।

अदालत ने विद्यार्थियों के बेहतर भविष्य के लिए नियम बनाने का कहते हुए आदेश की कॉपी मुख्य सचिव, एसीएस शिक्षा और सभी बोर्ड को भेजी है। जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश एलबीएस कान्वेंट स्कूल, दी लॉर्ड बुद्धा पब्लिक स्कूल व इनके विद्यार्थियों की ओर से दायर याचिकाओं पर दिए। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता स्कूल अपने विवाद को लेकर सीबीएसई के समक्ष अपना अभ्यावेदन दें और बोर्ड छात्र हितों को देखते हुए उसे तय करें। अदालत ने इस दौरान स्कूल के विद्यार्थियों को दूसरी स्कूल में शिफ्ट नहीं करने को कहा है।

शिक्षा बनी लाभ का व्यापार-

अदालत ने कहा कि प्रदेश में अनेक स्कूल हैं, जो कक्षा 9 से 12 के विद्यार्थियों को डमी प्रवेश देते हैं। इन स्कूल में विद्यार्थियों को नियमित आने की जरूरत नहीं रहती, ताकि वे स्कूल के समय में कोचिंग सेंटर में नीट, जेईई आदि की पढाई कर सके। ऐसे में शिक्षा कोचिंग सेंटर और स्कूलों के लिए लाभ का व्यापार बन गई है।

अभिभावकों के अनुरोध पर होता है प्रवेश

अदालत ने कहा कि निजी स्कूल अभिभावकों के अनुरोध और कोचिंग सेंटर की मिलीभगत से डमी एडमिशन लेते हैं। ऐसी स्कूलों का प्रसार शिक्षा व्यवस्था के लिए संकट का संकेत है और शिक्षा प्रणाली के लिए कलंक के समान है।

सभी विद्यार्थियों का नहीं हो सकता चयन, अभिभावक नहीं थोपे इच्छा

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि नीट और जेईई आदि की सीमित सीटों के कारण हर विद्यार्थी का इनमें चयन मानवीय रूप से असंभव है। ऐसे में अभिभावक डॉक्टर और इंजीनियर बनने की इच्छा विद्यार्थी पर थोपने के बजाए उन्हें अपना करियर चुनने की आजादी दें। अदालत ने कहा कि यह सही समय है जब शिक्षा बोर्ड इस मुद्दे पर गौर करे और सख्त नियम बनाए, जिसमें कक्षा 9 से 12 के विद्यार्थियों के लिए नियमित उपस्थिति जरूरी हो।

यह थी याचिकाकर्ताओं की पीड़ा

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आरबी माथुर ने बताया कि याचिकाकर्ता का सीबीएसई ने निरीक्षण कर कुछ कमियां बताते हुए एक साल के लिए मान्यता समाप्त कर दी और स्कूल को सीनियर सैकण्डरी से सैकण्डरी में बदल दिया। अदालत के आदेश पर पेश अभ्यावेदन पर भी राहत नहीं दी गई। जबकि समान मामले में एक स्कूल पर पांच लाख का हर्जाना लगाते हुए कमियां दूर करने की छूट दी गई।

सीबीएसई का यह था तर्क

सीबीएसई की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ताओं ने नियमों की अवहेलना की थी। वहीं स्कूल में डमी छात्र, रिकॉर्ड में हेराफेरी सहित तय अनुपात में शिक्षक आदि भी नहीं थे।

—————

(Udaipur Kiran)

Most Popular

To Top