





-गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में हुआ आयाेजन
गोरखपुर, 28 नवंबर (Udaipur Kiran) । महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर (एमजीयूजी) के गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) में भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र की तरफ से ‘स्वास्थ्य देखभाल पर धार्मिक विश्वासों का प्रभाव’ विषय पर शुक्रवार को अतिथि व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता अमेरिकन बोर्ड ऑफ फॉरेंसिक मेडिसिन के प्रोफेसर एवं यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के सीनियर फार्माकोलॉजिस्ट डॉ. रामा एस. द्विवेदी ने कहा कि जब विज्ञान और अध्यात्म साथ चलते हैं तब उपचार अधिक मानवीय, करुणाशील और प्रभावी बनता है।
अपने व्याख्यान में डॉ. द्विवेदी ने आइंस्टीन द्वारा 1930 में प्रकाशित ‘रिलिजन एण्ड साइंस’ का संदर्भ देते हुए कहा कि धार्मिक विश्वास मानव मनोविज्ञान से उपजे हैं। भय, संरक्षण की चाह और विस्मय व रहस्य का गूढ़ अनुभव, यही तीन स्तर मानव आस्था की संरचना को परिभाषित करते हैं। उन्होंने कहा कि आधुनिक क्लिनिकल स्टडीज़ यह स्पष्ट करती हैं कि रोगी और चिकित्सक दोनों की धार्मिक,आध्यात्मिक पृष्ठभूमि स्वास्थ्य निर्णयों, बीमारी सहन क्षमता तथा उपचार अनुपालन पर उल्लेखनीय प्रभाव डालती है।
डॉ. द्विवेदी ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान अध्यात्म ने चिकित्साकर्मियों में मानसिक स्वास्थ्य, करुणा और सहनशीलता को बढ़ाने में सहायक भूमिका निभाई। शोध अध्ययनों में पाया गया कि धार्मिकता अवसाद, नशीली वस्तुओं के दुरुपयोग और आत्महत्या जैसी प्रवृत्तियों में कमी लाती है। प्रार्थना ध्यान जैसे अभ्यास रक्तचाप संतुलन और प्रतिरक्षा मज़बूत करने में सहायक पाए गए हैं। उन्होंने हिंदू एवं इस्लामी धार्मिक सिद्धांतों के उदाहरण देते हुए बताया कि विभिन्न आस्थाएं जीवन, स्वास्थ्य और उपचार को अपनी सांस्कृतिक दृष्टि से देखती हैं। हिंदू परंपरा में मन, शरीर, आत्मा का संतुलन, योग–ध्यान व सात्त्विक जीवनशैली स्वास्थ्य की आधारशिला है। वहीं इस्लाम में शरीर को ईश्वर की अमानत मानते हुए स्वास्थ्य संरक्षण को धार्मिक कर्तव्य कहा गया है।
उन्होंने सांस्कृतिक दक्षता को गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा की अनिवार्य शर्त बताया। रोगी की मान्यताओं का सम्मान, संवाद, परिवार की भागीदारी तथा धर्मगुरुओं द्वारा मंत्र जप अनुष्ठान उपचार परिणामों को प्रभावी बनाते हैं। उन्होंने भारत के संवैधानिक और विधिक ढाँचे, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, अंग प्रत्यारोपण अधिनियम तथा इच्छामृत्यु संबंधी न्यायालयीय निर्णयों का उल्लेख भी किया जो स्वास्थ्य नीति में सांस्कृतिक संवेदनशीलता की पुष्टि करते हैं।
अध्यक्षीय संबोधन में श्री गोरक्षनाथ मेडिकल कॉलेज हास्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर के प्राचार्य डॉ. अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि स्वस्थ का वास्तविक अर्थ स्वयं के स्वरूप में स्थित होना है। ध्यान, चित्त–स्थिरता और आत्मानुशीलन स्वास्थ्य का आधार हैं। स्वागत भाषण आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्य डॉ. गिरिधर वेदांतम ने किया जबकि अतिथि परिचय फार्मेसी संकाय के डीन डॉ. मधुसूदन पुरोहित ने कराया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. चन्द्रशेखर ने किया। कार्यक्रम में उप-प्राचार्य डा. सुमित, आईकेएस सह समन्वयक डॉ. साध्वी नन्दन पाण्डेय, डॉ. देवी नायर, डॉ. अभिजीत, डॉ. प्रज्ञा सिंह, डॉ. सार्वभौम, डॉ. नवोदय राजू, संकाय सदस्यों, चिकित्सकों, शोधार्थियों एवं बीएएमएस, एमबीबीएस विद्यार्थियों की सहभागिता रही।
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(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय