
—प्रतिकूल प्रसवकालीन परिणामों और आपातकालीन सिजेरियन सेक्शनों में कमी पर होगी चर्चा
—सीटीजी ट्रेसिंग की सटीक, मानकीकृत और वैज्ञानिक व्याख्या होगी
वाराणसी,28 नवम्बर (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के प्रसुति एवं स्त्री रोग विभाग की ओर से दो दिवसीय इंटरैक्टिव, एडवांस्ड फिज़ियोलॉजिकल कार्डियोटोकोग्राफी (सीटीजी) मास्टरक्लास शनिवार से शुरू होगी। इसमें देश के विभिन्न राज्यों से विशेषज्ञ चिकित्सक शामिल होंगे। मास्टर क्लास में उत्तर प्रदेश बिहार सहित देश के कई क्षेत्रों में मातृ एवं नवजात स्वास्थ्य, नवजात में सिरेब्रल पाल्सी, पेरिनेटल रोग-क्षमता पर मंथन होगा।
शुक्रवार को बीएचयू के मीडिया काफ्रेंस हॉल, सूचना एवं जनसम्पर्क कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान विभाग की वरिष्ठ प्रोफेसर एवं मास्टरक्लास की संयोजक उमा पाण्डेय ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कार्डियोटोकोग्राफ (सीटीजी) का उपयोग प्रसव के दौरान गर्भाशय संकुचन के प्रति भ्रूण की हृदय गति में होने वाले परिवर्तनों को रिकॉर्ड करने के लिए किया जाता है, ताकि समय रहते उन भ्रूणों की पहचान की जा सके जिन्हें ऑक्सीजन की कमी के कारण होने वाली मस्तिष्क क्षति और प्रसवकालीन मृत्यु से बचाने के लिए त्वरित हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
उन्होंने बताया कि विश्वभर में गर्भावस्था के दौरान भूण हाइपोक्सिया (ऑक्सीजन की कमी) के मामले सामने आते हैं, जो तीव्र , उप-तीव्र या दीर्घकालिक रूप में विकसित हो सकते हैं। ऐसे मामलों के समय पर पता न चल पाने से नवजात में सिरेब्रल पाल्सी, पेरिनेटल रोग-क्षमता और यहाँ तक कि पेरिनेटल मृत्यु जैसी गंभीर परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। समय रहते सही निदान और उचित प्रबंधन से इन जटिलताओं को काफी हद तक रोका जा सकता है। प्रो.उमा पांडेय ने बताया कि भ्रूण की हृदय गति में देखे गए परिवर्तनों की गलत व्याख्या से प्रसवकालीन मस्तिष्क क्षति, प्रसव के दौरान या जन्म के बाद नवजात की मृत्यु हो सकती है। इसके विपरीत, सामान्य भ्रूणीय तनाव प्रतिक्रियाओं पर अनावश्यक प्रतिक्रिया देने से अनावश्यक आपातकालीन सिजेरियन सेक्शन, फोर्सेप्स या वैक्यूम प्रसव हो सकते हैं, जिससे प्रसवोत्तर रक्तस्राव, संक्रमण (सीप्सिस), शिरापरक थ्रोम्बोएम्बोलिज़्म जैसी जटिलताएँ तथा अगली गर्भावस्थाओं में गर्भाशय फटने और प्लेसेंटा एक्रीटा स्पेक्ट्रम जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
उन्होंने बताया कि बीएचयू की प्रसूति टीम साक्ष्य-आधारित नैदानिक अभ्यास और व्यक्तिगत देखभाल के सिद्धांतों का पालन करते हुए माताओं और शिशुओं की देखभाल में सुधार पर केंद्रित है। हमारी टीम ग्लोबल एकेडमी ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग, लंदन के निदेशक के साथ सहयोग कर रही है—जिन्होंने 2006 में सीटीजी की फिज़ियोलॉजिकल व्याख्या की अवधारणा की शुरुआत की थी। ताकि भारत में इस ज्ञान का प्रसार किया जा सके और माताओं व शिशुओं को अनावश्यक हानि से बचाया जा सके।
चिकित्सा विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. एस.एन. शंखवार ने बताया कि बीएचयू पहला विश्वविद्यालय अस्पताल है जिसने यह उन्नत फिज़ियोलॉजिकल सीटीजी मास्टरक्लास आयोजित किया है। अस्पताल 2024 में 20 प्लस देशों के 50प्लस सीटीजी विशेषज्ञों द्वारा निर्मित अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ सहमति दिशानिर्देशों के सिद्धांतों को लागू करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। ताकि अनावश्यक प्रतिकूल प्रसवकालीन परिणामों और आपातकालीन सिजेरियन सेक्शनों में कमी लाई जा सके। मास्टरक्लास में सीटीजी ट्रेसिंग की सटीक, मानकीकृत और वैज्ञानिक व्याख्या विशेषज्ञ देंगे।
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी