
—राष्ट्रीय संगोष्ठी: कोविड-19 के सबक और भविष्य की राह पर चर्चा
वाराणसी, 26 नवम्बर (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि यद्यपि भारत ने स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और सामाजिक संकेतकों में उल्लेखनीय प्रगति की है। फिर भी प्रत्येक नागरिक के लिए गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक हैं। उन्होंने कहा कि हमें यह पुनर्विचार करने की आवश्यकता है कि हम क्या पढ़ाते हैं और कैसे पढ़ाते हैं। कक्षागत शिक्षा को ऐसी मूल्य-वर्धित शिक्षा देनी चाहिए जो इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री से आगे बढ़कर हो।
कुलपति बुधवार को “कोविड-19 के निहितार्थ: सीखे गए सबक और भविष्य की राह” विषयक संगोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। सामाजिक समावेशन अध्ययन केंद्र,बीएचयू एवं नोमुरा ट्रस्ट फॉर लाइफलॉन्ग इंटीग्रेटेड एजुकेशन, इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में के.एन. उडुप्पा प्रेक्षागृह में आयोजित संगोष्ठी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तथा शिक्षाविद् प्रो. वाई. सी. सिम्हाद्री को समर्पित रही।
गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि निदेशक, एनसीईआरटी, नई दिल्ली प्रो. दिनेश प्रसाद सक्लानी ने कहा कि महामारी के शुरुआती महीनों में विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में गहरी अनिश्चितता उत्पन्न हुई। लेकिन “हर विपत्ति अपने साथ एक अवसर भी लाती है”, और इतिहास में संकट अक्सर सभ्यताओं के विकास को तेज करते हैं। उन्होंने कहा कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति की वाहक है। शिक्षा का उद्देश्य ऐसे मनुष्यों का निर्माण होना चाहिए जो समाज, पर्यावरण और राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति संवेदनशील हों। गोष्ठी में प्रो. आरती जगन्नाथन (मानसिक स्वास्थ्य एवं सामाजिक कार्य विभाग, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज़ बेंगलुरु) ने टेली-मानस, जो राष्ट्रीय टेली-मेंटल हेल्थ कार्यक्रम (2022) के तहत शुरू किया गया था, पर विस्तृत जानकारी दी। इसके पहले प्रो. वाई.सी. सिम्हाद्री के प्रेरणादायी शैक्षणिक जीवन को समर्पित एक विशेष वीडियो स्मृति प्रस्तुत की गई।
संगोष्ठी में अध्यक्षता करते हुए कुलपति ने कोविड-19 की प्रारम्भिक चुनौतियों का उल्लेख कर कहा कि महामारी ने ऑनलाइन शिक्षण को वह मान्यता दी, जिसका पूर्व में पर्याप्त रूप से अभाव था। हालांकि, उन्होंने यह स्पष्ट किया कि ऑनलाइन शिक्षण का उपयोग पूरक के रूप में होना चाहिए, न कि कक्षा शिक्षण के विकल्प के रूप में। उन्होंने यह भी कहा, “यदि छात्र को कक्षा में या कक्षा के बाहर अच्छा प्रश्न पूछने का अवसर नहीं मिलता, तो हम अपनी प्रणाली को बेहतर बनाने का महत्वपूर्ण अवसर खो रहे हैं।”
श्रीमती वाई. नाओको सिम्हाद्री, मैनेजिंग ट्रस्टी, नोमुरा ट्रस्ट फॉर लाइफलॉन्ग इंटीग्रेटेड एजुकेशन, ने परिचयात्मक उद्बोधन दिया। कार्यक्रम की शुरुआत बीएचयू के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल इन्क्लूजन के प्रोफेसर जे. बी. कोमारैया की अध्यक्षता में एक पैनल चर्चा के साथ हुई, जिसमें पूर्व कुलपति और वरिष्ठ शिक्षाविद शामिल हुए। सत्र का संचालन आंध्र प्रदेश के द्रविड़ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और एनआईटी श्रीनगर के पूर्व निदेशक प्रोफेसर सुधाकर येदला ने किया। पैनलिस्टों में पूर्व कुलपति प्रोफेसर एस.वी. सुधाकर, बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान स्थित चिकित्सा संकाय के प्रमुख प्रो. संजय गुप्ता, प्रोफेसर हरिकेश सिंह और बीएचयू के विधि संकाय की प्रोफेसर बिभा त्रिपाठी शामिल थीं। दूरसंचार विभाग के पूर्व उप महानिदेशक वाई.वी. शास्त्री ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
—————
(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी