
—दरबार में दर्शन पूजन के लिए उमड़े श्रद्धालु,किसानों ने अपनी धान की पहली फसल माता को किया अर्पित
वाराणसी,26 नवम्बर (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी (काशी) में मां अन्नपूर्णा के 17 दिवसीय महाव्रत अनुष्ठान का समापन बुधवार को हुआ। इस अवसर पर माता का दरबार जयकारों से गूंजता रहा। मंदिर के महंत शंकर पुरी ने भव्य भोग आरती की। इसके उपरांत देवी दर्शन के लिए भक्तों की कतार देर रात मंदिर बंद होने तक लगी रही। सफेद वस्त्र में श्रद्धालु महिलाओं और पुरूषों ने मां अन्नपूर्णा को 17 प्रकार के पकवानों का भोग लगाकर व्रत को पूरा किया। परम्परानुसार व्रत के समापन पर पूरे दरबार को धान की नई बालियों से सजाया गया। मंदिर परिसर से लेकर गर्भगृह तक धान की बालियों से श्रृंगार किया गया।
बताते चलें यह व्रत 10 नवंबर से आरंभ हुआ था। इस व्रत को महिलाएं 17 दिन, 17 महीने और 17 वर्षों तक करने के बाद उद्यापन करती हैं। व्रतियों ने व्रत का उद्यापन कर माता से सुख समृद्धि का आशीर्वाद मांगा। महंत शंकर पुरी ने बताया कि धान की नई बालियां प्रतिवर्ष पूर्वांचल के किसानों की ओर से मंदिर में अर्पित की जाती हैं। धान की पहली कटाई माता अन्नपूर्णा के चरणों में अर्पित की जाती है। यही धान की बालियां भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित की गई। ऐसी मान्यता है कि धान की इन बालियों को अन्नागार में रखने पर पूरे वर्ष भर व्यक्ति को धन-धान्य की कमी नहीं होती। उन्होंने बताया कि 27 नवंबर को प्रसाद स्वरूप धान की बाली आम भक्तों में वितरित की जाएंगी। मंदिर के महंत के अनुसार 17 दिनों तक महाव्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को अन्न-धन, ऐश्वर्य की कमी जीवन पर्यन्त नहीं होती। मां अन्नपूर्णा का व्रत-पूजन दैहिक, दैविक, भौतिक सुख प्रदान करता है। अन्न-धन, ऐश्वर्य, आरोग्य एवं संतान की कामना से यह व्रत किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि माता अन्नपूर्णा का मंदिर पूरे देश में ऐसा मंदिर है जहां भक्त अपनी पहली धान की फसल की बाली अर्पित करते हैं। पूर्वांचल के विभिन्न जिलों के किसान अपनी धान की फसल की पहली बाली मां को अर्पित करते हैं। फिर उसी बाली को प्रसाद के रूप में अपनी दूसरी धान की फसल में रखते हैं। किसानों का मानना है कि ऐसा करने से उनकी फसल की पैदावार में बढ़ोतरी होती है। इस व्रत की शुरूआत मार्गशीर्ष (अगहन) माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी से होती है।
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी