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सिरमौर के जनजातीय क्षेत्र गिरी पार में बूढ़ी दिवाली की धूम

सिरमौर जिले के जनजातीय गिरी पार क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली मनाई जा रही है धूमधाम से।

नाहन, 21 नवंबर (Udaipur Kiran) । सिरमौर जिले के जनजातीय गिरी पार क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली पर्व का आगाज हो गया है। यह अनोखा त्यौहार दीवाली पर्व के ठीक एक महीने बाद मनाया जाता है। इस दौरान पहाड़ी क्षेत्रों में जमकर नाच गाना और दावतों का दौर चलता है। पारंपरिक वेशभूषाओं में बुढ़ेछू नृत्य आयोजित होता है। यह सेलिब्रेशन 5 से 7 दिनों तक चलता है।

हालांकि इस अनोखे त्यौहार को मनाने के कारणों का लिखित उल्लेख नहीं मिलता है मगर मान्यता है कि दैत्य राज बली दीपावली के बाद ठीक अगली अमावस्या को पाताल लोक से धरती पर आए थे। उनके धरती पर आगमन के उपलक्ष में बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा शुरू हुई।

एक अन्य मान्यता के अनुसार दूर दराज पहाड़ी क्षेत्रों में भगवान श्री राम के अयोध्या आगमन और दीपोत्सव के बारे में देर से पता चला। लिहाजा, उत्तर भारत के हिमालय क्षेत्रों में दीपावली के एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई। सिरमौर जिले के पहाड़ी क्षेत्र के अलावा शिमला और किन्नौर जिलों के अलावा उत्तराखं के ट्राइबल क्षेत्र में भी यह त्यौहार मनाया जाता है। इस पर्व की शुरुआत अमावस्या की सुबह तड़के मशाल जुलूस और पारंपरिक नाच गाने के साथ होती है। गांव के लोग सुबह लगभग 3 बजे मशालें जलाकर विशाल जुलूस निकालते हैं। मशाल जुलूस गांव के मंदिर से शुरू होकर गांव के दूसरे छोर पर खत्म होता है।

मान्यता है कि मशाल जुलूस और ढोल नगाड़ों की थाप से नकारात्मक शक्तियों को गांव से बाहर खदेड़ कर उनका प्रतीकात्मक दहन किया जाता है। गांव के बाहर होने वाले इस अग्नि दहन को बलाराज जालना कहा जाता है। मशाल जुलूस के साथ ही गांव-गांव में बुढ़ेच्छू नृत्य की शुरुआत होती है। इस दौरान लोग जमकर मस्ती करते हैं ढोल नगाड़ों की थाप और पारंपरिक गीतों की धुनों पर नाचते गाते हैं और दावतों का मजा लेते हैं। बूढ़ी दिवाली पर गेंहूँ से बनी विशेष नमकीन मूड़ा, पापड़ और अखरोट जैसे सूखे मेवे परोसे जाते हैं। त्योहार मनाने के पीछे कारण जो भी रहा हो मगर आधुनिकता के इस दौर में भी गिरिपार हाटी क्षेत्र के लोगों ने प्राचीन परंपराओं को जीवंत रखा है। बूढ़ी दिवाली पर्व लोगों का अपनी परंपराओं के प्रति प्रेम का संजीव उदाहरण है।

गिरीपार क्षेत्र रेणुका जी शिलाई कई गॉव में रामा़यण व महाभारत मंचन व संस्कृति की संध्या का आयोजन किया जाता है। स्थानीय कलाकारव पहाड़ी क्षेत्र से बुलाया कलाकारों द्वारा नाटी (घी) व मुुजरा की भी प्रस्तुति हर्ष उल्लास के साथ दी जाती है।

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(Udaipur Kiran) / जितेंद्र ठाकुर