RAJASTHAN

एनआरसीसी बीकानेर में ऊंट संरक्षण और उद्यमिता पर हुई विचार गोष्ठी

जोधपुर की राजकुमारी शिवरंजनी राजे ने बीकानेर में शुरू किया ‘आई लव कैमल मिल्क’ अभियान

बीकानेर, 20 नवंबर (Udaipur Kiran) । राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर (एनआरसीसी) में गुरुवार को “ऊंट विरासत, संरक्षण एवं उद्यमिता” विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में जोधपुर के पूर्व राजपरिवार की सदस्य शिवरंजनी राजे मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं, जबकि राजुवास, बीकानेर के कुलगुरु डॉ. सुमन्त व्यास और अंतरराष्ट्रीय ऊंट विशेषज्ञ डॉ. पियर्स सिम्पकिन विशिष्ट वक्ता के रूप में शामिल हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता केन्द्र निदेशक डॉ. अनिल कुमार पूनिया ने की। इस अवसर पर एनआरसीसी के सभी वैज्ञानिकों ने सक्रिय सहभागिता निभाई।

मुख्य संबोधन में शिवरंजनी राजे ने ऊंट को राजस्थान की “प्राकृतिक धरोहर” बताते हुए कहा कि ऊंट प्रजाति का संरक्षण केवल वैज्ञानिक दायित्व नहीं, बल्कि सांस्कृतिक जिम्मेदारी भी है। उन्होंने कहा कि वह अनुसंधान विशेषज्ञ नहीं हैं लेकिन मारवाड़ की बेटी होने के नाते ऊंटों के संरक्षण और ऊंटपालक समुदाय के हित में सतत प्रयास करती रहेंगी। उन्होंने ऊंट प्रजाति के अस्तित्व के लिए चरागाह क्षेत्रों की सुरक्षा को अनिवार्य बताया। उन्होंने स्थानीय घासों की ऊंट पालन में भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विकास के साथ-साथ पशुधन और पारंपरिक पशुपालन को भी समान प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता है। इस अवसर पर उन्होंने “आई लव कैमल मिल्क” अभियान की शुरुआत की तथा एनआरसीसी द्वारा विकसित ऊंटनी के दूध से बनी आइसक्रीम का भी स्वाद लिया।

गोष्ठी में राजुवास के कुलगुरु डॉ. सुमन्त व्यास ने कहा कि मानव सभ्यता, थार की अर्थव्यवस्था और मरुस्थलीय जीवन पद्धति में ऊंट का योगदान ऐतिहासिक और अतुलनीय रहा है। वहीं केन्द्र निदेशक डॉ. अनिल कुमार पूनिया ने बताया कि एनआरसीसी का मूल उद्देश्य ‘ऊंट और ऊंटपालक’ समुदाय के हितों का संरक्षण एवं संवर्धन है। उन्होंने कहा कि ऊंटनी का दूध केवल पोषण का स्रोत नहीं बल्कि एक “फूडीस्‍यूटिकल” है, जिसमें पोषण और औषधीय गुणों का अद्वितीय समन्वय मौजूद है।

अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ डॉ. पियर्स सिम्पकिन ने केन्या में ऊंटों पर हुए अपने अनुसंधान का उल्लेख करते हुए कहा कि बदलते जलवायु परिदृश्य में ऊंट एक अत्यंत अनुकूलनशील प्रजाति है, जो कठिन पर्यावरणीय परिस्थितियों में भी जीवित रह सकती है। उन्होंने केन्या सरकार द्वारा ऊंट क्षेत्र में किए गए विभिन्न संस्थागत और नीतिगत हस्तक्षेपों की जानकारी देते हुए भारत में भी ऐसे प्रयासों की अपार संभावनाएँ बताईं। साथ ही उन्होंने भारत और केन्या के बीच संयुक्त अनुसंधान की संभावना पर भी बल दिया।

कार्यक्रम का संचालन वैज्ञानिक डॉ. श्याम सुंदर चौधरी ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राकेश रंजन द्वारा प्रस्तुत किया गया।

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(Udaipur Kiran) / राजीव