Delhi

“भारत की सभ्यतागत विरासत और धर्म-आधारित सामुदायिक शासन” पर डीयू में सेमिनार आयोजित

दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह सेमिनार में।

नई दिल्ली, 15 नवंबर (Udaipur Kiran) । दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के विधि संकाय में 5 वर्षीय एकीकृत विधि पाठ्यक्रम (आईएलसी) की साहित्यिक एवं वाद-विवाद समिति ने डीयू संस्कृति परिषद के सहयोग से भारत की सभ्यतागत विरासत और धर्म-आधारित सामुदायिक शासन शीर्षक से संगोष्ठी का आयोजन किया। दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस रीगल लॉज स्थित कन्वेंशन हॉल में आयोजित इस संगोष्ठी में प्रमुख कानून विशेषज्ञों ने कानूनी ढांचों के माध्यम से भारत की स्थापत्य और धार्मिक विरासत के संरक्षण, ऐतिहासिक राम मंदिर निर्णय और समकालीन भारत में धर्म-आधारित सामुदायिक शासन मॉडलों को लागू करने की अनिवार्यता पर विचार-विमर्श किया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता जे. साईं दीपक तथा एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड विष्णु शंकर जैन विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने की।

कार्यक्रम काे संबाेधित करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि भारत में धर्म आधारित शासन व्यवस्था का आग्रह सदा से रहा है। भारत ने शत्रु से भी धर्म आधारित व्यवहार किया। ऐसा राष्ट्र अपनी अच्छाइयों के बाद भी गुलाम रहा। भारत का और भारत के समाज का ज्यादा अच्छा होना ही गुलामी का कारण बना। उन्होंने गीता के एक श्लोक के हवाले से कहा कि अहिंसा परमोधर्म है, लेकिन उसी श्लोक के अगले भाग में लिखा गया है कि धर्म के लिए हिंसा भी स्वीकार्य है।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि, वरिष्ठ अधिवक्ता जे. साईं दीपक ने डीयू के विधि संकाय को धन्यवाद दिया और नव स्थापित केंद्र के माध्यम से भारतीय दर्शन को व्यावहारिक कार्यान्वयन से जोड़ने का आग्रह किया। उन्होंने 1911-1947 के औपनिवेशिक तुष्टिकरण काल के दौरान भारत के लचीलेपन पर चर्चा की और इतिहास, भाषा, धर्मशास्त्र, कानून और अर्थशास्त्र को एकीकृत करते हुए सभ्यतागत अध्ययन के लिए एक अंतःविषय दृष्टिकोण की वकालत की।

उन्होंने चेतावनी दी कि “शहरीकरण” और “आधुनिकीकरण” पारंपरिक स्थानों के लिए खतरा हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सच्चा समुदाय-आधारित शासन तभी कारगर होता है जब समुदाय कीमत चुकाता है और यूरोप के “ग्रामीकरण” के चलन को एक सबक के रूप में उद्धृत किया। उन्होंने जोर देकर कहा, “समुदाय को वही मिलेगा जिसमें वह निवेश करता है।”

एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड, विष्णु शंकर जैन ने कहा कि खजुराहो के विष्णु मंदिर जैसे विरासत स्थलों के जीर्णोद्धार के महत्व पर जोर दिया और एएसआई अधिनियम के बारे में भ्रांतियों को दूर करते हुए स्पष्ट किया। उन्हाेंने बताया कि धारा 16(1) स्मारकों के धार्मिक स्वरूप की रक्षा करती है और उचित पूजा-अर्चना की अनुमति देती है। उन्होंने राम मंदिर फैसले को एक ऐतिहासिक मोड़ बताया और “एक बार मंदिर, हमेशा मंदिर” सिद्धांत और न्यायिक व्यक्तित्व की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने वक्फ जैसे कानूनों पर भी चर्चा का आग्रह किया।

सेमिनार में कानून विशेषज्ञों के साथ ही प्रोफेसर (डॉ.) अंजू वली टिकू, विधि संकाय के विभागाध्यक्ष और डीन प्रोफेसर (डॉ.) रजनी अब्बी, दक्षिण परिसर के निदेशक, डॉ. विकास गुप्ता, डीयू संस्कृति परिषद अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) रविंदर कुमार, लिट-डीईबीएसओसी सहित अनेकों शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

——————–

(Udaipur Kiran) / माधवी त्रिपाठी