

रांची, 13 नवंबर (Udaipur Kiran) । भगवान बिरसा मुंडा जैसे अनेकों क्रांतिवीर और वीरांगनाओं ने झारखंड की धरती से विश्व में भारत का मान बढ़ाया है, जो हमारे लिए गौरव एवं अभिमान का विषय है। यह बातें विद्या भारती अखिल भरतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अवनीश भटनागर ने गुरुवार को भारतीय ज्ञान परंपरा में जनजातीय समाज के योगदान विषय पर रांची के केंद्रीय पुस्तकालय स्थित शहीद स्मृति सभागार में आयोजित विचार गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि कही।
उन्होंने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा, सिद्धू-कान्हो, चांद भैरव, फूलो झानो जैसे अनेकों क्रांतिवीर और वीरांगनाओं ने भारतवर्ष को विदेशी अत्याचारों और गुलामी से मुक्त करा के उसकी अपनी संस्कृति और स्वतंत्रता रूपी विरासत को बचाने का काम किया। अंग्रेज अपने गजट में लिखते हैं कि उन्हें 1757 से 1857 तक 38 ऐसे युद्ध में भगवान बिरसा मुंडा जैसे क्रांतिवीरों एवं वीरांगनाओं के चलते हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज की परंपराएं, मूल दर्शन भारतीय संस्कृति के मूल मूल आधार हैं। भारत की संस्कृति, प्रकृति की पूजा की रही है और इसका वाहक हमारा जनजातीय समाज है। हम सभी को इस समाज पर गर्व है, क्योंकि इन्हीं के कारण हमारी प्रकृति और संस्कृति बची है।
कोलांचल विश्वविद्यालय के पूर्वकुलपति डॉ अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा आधारित शिक्षा व्यवस्था होने के कारण हम विश्वगुरु थे। बीच कालखंड में इसमें कमी आई जिसके कारण हम पीछे गए। आज हम पुनः भारतीय ज्ञान परंपरा आधारित अपनी शिक्षाव्यवस्था एवं प्रकृति सानिध्य में जाकर प्रकृति प्रदत्त खनिज संपदाओं ,जड़ी बूटियां का समुचित प्रयोग कर आगे बढ़ सकते हैं।
राष्ट्रीय सयंसेवक संघ उत्तर पूर्व क्षेत्र के संघ चालक देवव्रत पाहन ने कहा कि समुद्र के पानी को स्याही और ब्रह्माण्ड को कागज बना दिया जाए फिर भी भारतीय समाज के मूल जनजातीय समाज के योगदान को नहीं लिखा जा सकता। झारखंड में 32 जनजातीय समाज है। भारत के स्वतंत्रता की लड़ाई में उन सब का योगदान रहा है।
विद्या भारती उत्तर पूर्व क्षेत्र के संगठन मंत्री ख्यालीराम ने कहा कि प्रकृति का संरक्षण जनजातीय समाज से सीखना है। प्रकृति के पांचों तत्व का बहुत बड़ा महत्व है। इन पांचों तत्व में से एक भी तत्व समाप्त हो जाए तो इसका चक्र समाप्त हो जाएगा। हमारा जीवन पंचमहाभूत पर आधारित है जो हमारे अस्तित्व का कारण है, इसको बचाकर रखने का काम जनजातीय समाज ने ही किया है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य डॉ आशा लकड़ा ने कहा कि 2500 से 1500 ईसा पूर्व के अभिलेख में जनजातीय समाज की जानकारी दी गई है। गुमला जिला के टांगीनाथ में (भगवनाथ परशुराम के टांगी का अवशेष है) स्वंभू शिव हैं जो हराडीह और जैनाडीह में भी स्वंभू हैं। उन्होंने कहा कि पूजा पद्धति में पाहन पूजारी बौद्धिक क्षमता से परिपूर्ण हैं। आयुर्वेद में भी जनजातीय समाज का अद्वितीय योगदान रहा है। भगवान बिरसा मुंडा का जनेऊ धारण करना सनातन संस्कृति के वाहक होना दर्शाता है।
विचार गोष्ठी में विद्या भारती ऊत्तर पूर्व क्षेत्र के मंत्री राम अवतार नारसरिया, विद्या विकास समिति, झारखंड के प्रदेश मंत्री डॉ ब्रजेश कुमार, निशा ऊरांव, मनोज भारद्वाज सहित आदित्य प्रकाश जालान टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज के अध्यापक सहित अन्य लोगों ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
—————
(Udaipur Kiran) / विकाश कुमार पांडे