Haryana

गुरुग्राम: जी.बी पंत अस्पताल के रेजीडेंट डा. अमित कुमार के मानवीय ड्यूटी आवर्स की मांग

-डीएमए इंडिया ने दिल्ली की मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

-1992 के ड्यूटी ऑवर्स नियमों के सख्ती से पालन की मांग

गुरुग्राम, 30 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । डेमोक्रेटिक मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए इंडिया) ने जी.बी. पंत अस्पताल के प्रथम वर्ष डीएम (कार्डियोलॉजी) रेजीडेंट डॉ. अमित कुमार के मामले पर गुरुवार को गहरी चिंता व्यक्त की है। इसके लिए डीएमए की तरफ से दिल्ली के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखा है।

डेमोक्रेटिक मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए इंडिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अमित व्यास, डॉ. शुभ प्रताप सोलंकी (राष्ट्रीय महासचिव), डॉ. भानु कुमार (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष) एवं डॉ. प्रियांशु शर्मा (राष्ट्रीय महिला प्रकोष्ठ सचिव) ने इस पर जल्द से जल्द संज्ञान लेकर न्याय की मांग की है। डॉ. अमित व्यास ने बताया कि जी.बी. पंत अस्पताल में रेजीडेंट डॉक्टर डॉ. अमित कुमार को लगातार 36 घंटे की ड्यूटी, नींद की कमी, मानसिक उत्पीडऩ और असहनीय कार्य परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। जिसके कारण उन्होंने 23 अक्टूबर 2025 को अपना इस्तीफा सौंप दिया। यह स्थिति न केवल मानवीय मूल्यों के विरुद्ध है, बल्कि भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 1992 में जारी रेजड़िेंसी ड्यूटी ऑवर्स निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन भी है, जिसमें रेजीडेंट डॉक्टरों के लिए साप्ताहिक 48 घंटे और अधिकतम 12 घंटे की लगातार ड्यूटी की सीमा तय की गई है।

डॉ. शुभ एवं डॉ. प्रियांशु ने बताया कि नेशनल टास्क फोर्स रिपोर्ट-2024 माननीय सर्वोच्च न्यायालय के मार्गदर्शन में तैयार की गई थी। इसमें यह स्पष्ट किया था कि अत्यधिक कार्य घंटे और मानसिक शोषण, डॉक्टरों में मानसिक स्वास्थ्य संकट के प्रमुख कारण हैं। डीएमए का कहना है कि दो अलग-अलग आरटीआई आवेदन के बावजूद अस्पताल प्रशासन द्वारा निर्धारित 48 घंटे की समयसीमा में कोई जानकारी नहीं दी गई, जो पारदर्शिता और प्रशासनिक जवाबदेही की गंभीर कमी को दर्शाता है। डीएमए इंडिया की ओर से मांग की गई है कि डॉ. अमित कुमार को तुरंत मानवीय कार्य घंटे प्रदान किए जाएं। अस्पताल में कार्यरत सभी रेजीडेंट डॉक्टरों के लिए 1992 के दिशा-निर्देशों एवं 2024 की राष्ट्रीय टास्क फोर्स की सिफारिशों का सख़्ती से पालन किया जाए। राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. व्यास ने कहा कि डॉक्टरों के शोषण, अत्यधिक कार्यभार और मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा जैसी प्रथाएं किसी भी मेडिकल संस्थान में अस्वीकार्य हैं। रेजीडेंट डॉक्टर स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ हैं। उन्हें गरिमा, सम्मान और न्याय मिलना ही चाहिए।

(Udaipur Kiran)

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