
नई दिल्ली, 28 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अहम आदेश में कहा है कि फीस बढ़ोतरी और शिक्षकों की सैलरी पर कमेटियां फैसला नहीं कर सकती हैं। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि भले ही कोर्ट ने क्षेत्रीय और केंद्रीय स्तर की कमेटियां गठित की हैं, लेकिन वे फीस बढ़ोतरी और शिक्षकों के वेतन से जुड़े मामलों में न्यायिक फैसला नहीं कर सकती हैं।
कोर्ट ने साफ किया कि न्यायिक अधिकार केवल जजों के पास होते हैं और इन्हें किसी कमेटी को नहीं सौंपा जा सकता है। उच्च न्यायालय ने ये टिप्पणी निजी स्कूलों की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की। दरअसल, निजी स्कूलों ने सिंगल जज के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें दिल्ली सरकार को निर्देश दिया गया था कि वह छठे और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक शिक्षकों के वेतन और बकाया दिलाने के लिए क्षेत्रीय और केंद्रीय कमेटियों का गठन करें।
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि सिंगल जज का आदेश कमेटियों को फीस बढ़ोतरी या वेतन भुगतान जैसे विवादों का फैसला करने का अधिकार देता है, जो कानूनी रुप से गलत है। उच्च न्यायालय ने कहा कि इन कमेटियों में शिक्षकों का कोई प्रतिनिधि नहीं था, जिससे उनका पक्ष ठीक से नहीं सुना जा सकता है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत कोर्ट केवल फैक्ट फाइंडिंग कमेटियां ही बना सकती है। इन कमेटियों का काम कोर्ट की मदद करना होता है न कि किसी विवाद पर फैसला देना। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की अध्यक्षता वाली पीठ ने एकल पीठ के आदेश को रद्द करते हुए मामले पर दोबारा सुनवाई के लिए संबंधित पीठ को भेज दिया।
(Udaipur Kiran) /संजय
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(Udaipur Kiran) / अमरेश द्विवेदी