
रांची, 7 नवंबर (Udaipur Kiran) । कृषि मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा कि वन विभाग के अधिकारियों को आदिवासी रीति-रिवाज, पूजा-पाठ में जंगल के महत्व को समझना होगा। कई बार यह देखा जाता है कि पेड़ की टहनियों को घर लाने पर भी ग्रामीणों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है। यह कार्य जनता के साथ अन्याय है। वन संरक्षण कानून के तहत ग्रामीणों को मिलने वाले हक को कोई छीन नहीं सकता।
मंत्री शुक्रवार को रांची वन रोपण प्रक्षेत्र, बेड़ो अंतर्गत जंगली जानवरों से हुए फसल और मकान क्षति का मुआवजा वितरण सह पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रम में को संबोधित कर रही थी।
उन्होंने कहा कि सच्चाई है कि झारखंड में कटते जंगल के कारण मनुष्य और जानवरों के बीच तनाव बढ़ रहा है। रिहायशी इलाकों में जंगली जानवरों का प्रकोप इसी का नतीजा है। जंगली हाथी, लकडबग्घा और भालू के हमले इसके उदाहरण हैं। हाथियों की ओर से आए दिन किसानों के फसलों, मकान को नुकसान पहुचाने की बातें सामने आती है।
मौके पर उन्होंने बेड़ो, इटकी एवं लापुंग प्रखंड के भुक्तभोगी परिवारों के बीच मुआवजा राशि से संबंधित डिमांड ड्राफ्ट का वितरण किया। कृषि मंत्री ने कहा कि मुआवजा राशि भुक्तभोगी परिवार को हुए नुकसान और उनके दर्द को कम करने में मददगार साबित होगा। लेकिन इस बात को भी समझना होगा कि जंगल है तो जमीन है और जमीन है तो जीवन है। जीवन के साथ परम्परा और संस्कृति जुड़ी हुई है। कभी जहां जंगली जानवर रहा करते थे, आज वहां मनुष्यों की आबादी का दखल है। ऐसे में रिहायशी इलाकों में जंगली जानवरों के प्रवेश को बेहतर तरीके से समझना होगा। मंत्री ने कहा कि सरकार की ओर से दी जाने वाली मुआवजा राशि को लेकर कागजी प्रक्रिया को जरूर पूर्ण करें।
कार्यक्रम में रांची वन प्रमंडल पदाधिकारी श्रीकांत वर्मा, उप प्रमुख मुद्दसिर हक, प्रखंड अध्यक्ष करमा उरांव, इटकी प्रखंड अध्यक्ष रमेश महली, बेड़ो प्रखंड पदाधिकारी, अंचलाधिकारी सहित अन्य मौजूद थे।
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(Udaipur Kiran) / Manoj Kumar