

पर्व पर तीसरे दिन संध्या अर्घ्य के समय भगवान भाष्कर को विशेष प्रकार का पकवान “ठेकुवा” और मौसमी फल अर्पित होगा
वाराणसी,26 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । लोक आस्था का महापर्व डाला छठ वाराणसी सहित पूर्वांचल के जिलों में गहरी आस्था का प्रतीक के रूप में अपनी खास पहचान बना चुका है। वाराणसी जनपद के ग्रामीण और शहर इलाके के कोने-कोने में पर्व की सुगंध बिखर गई है। घरों से लेकर बाजारों में दूसरे दिन रविवार को खरना की रस्म निभाने के साथ बाजारों में फलों, दौरा-सूप और पूजन सामग्री की खरीदारी के लिए भारी भीड़ उमड़ रही है।
शहर के लंका, बीएचयू, भेलूपुर, गुरूधाम ,विजया चौराहा,चेतमणी चौक, चितईपुर, सिगरा सहित प्रमुख बाजारों में फलों अस्थाई दुकानें सज गई है। छठ पूजा के दौरान उपयोग होने वाले मौसमी फलाें में केला, सेब, मौसमी, अनार, अमरूद, सिंघाड़ा, नारियल, कच्ची हल्दी और अदरक की मांग सबसे अधिक है। हालांकि, इस बार महंगाई का असर बाजार में दिख रहा है, लेकिन श्रद्धालु आस्था को सिरमाथे रख फलों की खरीदारी कर रहे है। पर्व पर
तीसरे दिन सोमवार को संध्या अर्घ्य के समय भगवान भाष्कर को विशेष प्रकार का पकवान “ठेकुवा” और मौसमी फल चढ़ाया जायेगा। घरों में पूरे दिन व्रती महिला और उनके परिजन विशेष पकवान “ठेकुवा” बनाने में जुटे रहे। इसको लेकर हुकुलगंज की व्रती सीमा तिवारी, गुड़िया यादव ने बताया कि ठेकुआ चढ़ाने से छठी मैया बहुत प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद प्रदान करती हैं। मूलत: ठेकुआ गेहूं, गुड़, और घी आदि से मिलकर बना होता है। छठ पूजा में छठी मैया को ठेकुआ का प्रसाद इसलिए चढ़ाया जाता है, क्योंकि उनको भी ये प्रिय है। ऐसा लोगों में विश्वास है।
बताते चलें कि छठ में व्रती स्वयं अपने हाथों से ठेकुआ बनाती हैं। ठेकुआ घर की रसोई में नहीं, बल्कि घर में ही स्वच्छ स्थान पर बनता है। माना जाता है कि इसमें स्वयं सूर्य की आशीर्वाद रूपी ऊर्जा समाहित रहती है।
ज्योतिषविद रविन्द्र तिवारी बताते हैं कि छठ पर्व ही ऐसा पर्व है जिसमें पंडित और कर्मकांडी के साथ मंत्रोच्चार की जरूरत ही नही पड़ती। सबकुछ आस्था के वशीभूत होता है। संभवत यही इसके लोक में समाहित होने का कारण है। ठेकुआ बनाने के पीछे धारणा है कि यह आटे, गुड़ और घी से बनता है। यह न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि इसमें आस्था, परंपरा और औषधीय महत्व तीनों का जुड़ाव है। यह व्रत के बाद शरीर को ताकत देता है, जो उपवास के बाद ऊर्जा संतुलन में सहायक है।
उधर,महापर्व पर जिले के शहरी और ग्रामीण अंचल में पारंपरिक और आधुनिक दोनों प्रकार के छठ गीत गूंज रहे है। हालांकि आज भी छठ के पारम्परिक गीत ‘केरवा के पात पर, उगा हो सूरज देव भईल अरग के बेर’, केरवा जे फरले घउद में ता पर सुग्गा मंडराए, मरबऊ रे सुगवा धनुख से सुगा गिरे मुरझाए’, हम तोहसे पुछिले बरतिया करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी आदि गीत व्रती महिलाओं और उनके परिजनों में खासा लोकप्रिय है।
—————–
(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
