
शिमला, 26 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक नगर रामपुर बुशहर में इस वर्ष एक बार फिर परंपरा, संस्कृति और व्यापार का अद्भुत संगम देखने को मिलेगा। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लवी मेला, जिसकी शुरुआत 17वीं शताब्दी में बुशहर रियासत और तिब्बती शासकों के बीच हुए व्यापारिक समझौते के बाद हुई थी, आज भी स्थानीय जीवन, संस्कृति और अर्थव्यवस्था का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है।
लवी मेला न केवल वस्तुओं के आदान-प्रदान का मंच है, बल्कि पशुधन, विशेष रूप से घोड़ों के व्यापार के लिए भी प्रसिद्ध है। ‘लवी’ शब्द ‘लोवी’ से निकला है, जिसका अर्थ है ऊन काटना — यही कारण है कि ऊन और ऊनी परिधान इस मेले की पहचान रहे हैं।
इस परंपरा को जीवंत बनाए रखने और क्षेत्र की विशिष्ट चामुर्थी नस्ल के घोड़ों के संरक्षण एवं व्यापार को बढ़ावा देने के लिए हिमाचल प्रदेश पशुपालन विभाग और जिला प्रशासन शिमला के सहयोग से अश्व मंडी/हॉर्स शो का आयोजन 1 से 3 नवंबर तक किया जा रहा है।
चामुर्थी घोड़े, जिन्हें ठंडे रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है, लाहौल-स्पीति की पिन घाटी और किन्नौर की भाभा घाटी में पाले जाते हैं। मजबूत शरीर, ऊँचाई पर चलने की क्षमता और अत्यधिक ठंड सहने की विशेषता इन्हें अन्य नस्लों से अलग बनाती है।
घोड़ों का पंजीकरण 01 नवंबर को किया जाएगा और 02 नवंबर को अश्वपालकों के लिए एक जागरूकता शिविर और किसान गोष्ठी का आयोजन किया जाएगा। समापन दिवस, यानी 03 नवंबर को 400 मीटर और 800 मीटर घुड़दौड़ और गुब्बारा फोड़ प्रतियोगिता तथा पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित किये जायेंगे। उसी दिन मुख्य अतिथि द्वारा सर्वश्रेष्ठ घोड़ों का चयन और पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।
समापन दिवस पर मुख्य अतिथि द्वारा उत्कृष्ट घोड़ों को सम्मानित किया जाएगा। इस बार पड़ोसी राज्यों को भी प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है, जिससे अंतरराज्यीय व्यापार को भी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
रामपुर बुशहर का यह अश्व मेला न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करता है, बल्कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के अश्वपालकों एवं खरीदारों के लिए एक बड़ा अवसर भी प्रदान करता है। परंपरा, पशुधन और व्यापार का यह जीवंत संगम लवी मेले की ऐतिहासिक विरासत को आज भी उसी उत्साह और गौरव के साथ आगे बढ़ा रहा है।
—————
(Udaipur Kiran) शुक्ला
