
उज्जैन, 3 नवंबर (Udaipur Kiran) । भारत की संस्कृति मातृदेवो भव, पितृदेवो भव के भाव से ही जीवित रह सकती है। पाश्चात्य संस्कृति के संबोधन हमारी संस्कृति को नुकसान पहुंचा रहे हैं। यह बात राज्यसभा सांसद बालयोगी उमेशनाथ मजाराज ने सोमवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन में अखिल भारतीय कालिदास समारोह के दूसरे दिन शोध संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कही। स्वागत भाषण कालिदास संस्कृत अकादमी के निदेशक डॉ. गोविन्द गन्धे ने दिया। अध्यक्षता पद्मश्री डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित ने की। विशिष्ट अतिथि डॉ. शैलेन्द्र पाराशर थे। शोध संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में कुल दस शोध पत्र पढ़े गए। संचालन डॉ. अखिलेश कुमार द्विवेदी ने किया।
समारोह में व्याख्यानमाला के अतिथि समाजसेवी विभाष उपाध्याय थे। उन्होंने कहा कि महाकवि कालिदास भारत के स्थायी राजदूत हैं। यदि भारत के विचार सम्पूर्ण विष्व को प्रेषित करना है तो कालिदास के अतिरिक्त अन्य कोई माध्यम हो ही नहीं सकता। सारस्वत अतिथि प्रो. देवेन्द्र मिश्र,नईदिल्ली ने कहा कि कालिदास ने वेद के आलोक में अपने विचार व्यक्त किए हैं। मुख्य वक्ता प्रो. राजेश्वर मिश्र,कुरूक्षेत्र ने कहा कि कालिदास की दृष्टि में सम्पूर्ण विश्व परिवार है। अध्यक्षता महर्षि पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. शिवशंकर मिश्र ने की। स्वागत भाषण डॉ. गोविन्द गन्धे ने दिया। संचालन डॉ. पूजा उपाध्याय ने किया। आभार डॉ. संदीप नागर ने माना।
सम्राट विक्रमादित्य विवि द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के दूसरे दिन कालिदास साहित्य के साथ नाट्य शास्त्र के संबंध में शोध की नई दिशाओं पर व्यापक विमर्श हुआ। सत्र की अध्यक्षता प्रो.राधावल्लभ त्रिपाठी ने की। सारस्वत अतिथि प्रो.बसंतकुमार भट्ट अहमदाबाद एवं विशिष्ट अतिथि प्रो.ब्रजसुंदर मिश्र भुवनेश्वर,डॉ.रमण सोलंकी,प्रो.शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कालिदास साहित्य पर अपने विचार व्यक्त किए। कुलगुरू प्रो.अर्पण भारद्धाज,प्रो.मनुलता शर्मा,प्रो.सरोज कौशल,प्रो.कौशलेंद्र पाण्डेय उपस्थित थे। संचालन डॉ.रश्मि मिश्रा ने और आभार प्रो.जगदीशचंद्र शर्मा ने माना।
नृत्य की लावण्यता से भाव-विभोर हुए दर्शक
अखिल भारतीय कालिदास समारोह की तीसरी सांस्कृतिक संध्या पर भारतीय नृत्य की तीन प्रस्तुतियों ने दर्शकों का मन मोह लिया। जबलपुर की सुश्री भैरवी विश्वरूप ने शास्त्री नृत्य नाटिका शिव लीला को प्रस्तुत किया। नृत्य नाटिका में उन्होंने भगवान के विभिन्न स्वरूप को प्रदर्शित किया। अपनी संपूर्ण प्रस्तुति में कथक नृत्य में नए प्रयोगों से साक्षात्कार करवाया। दूसरी प्रस्तुति में नगर की नृत्य गुरु पद्मजा रघुवंशी की उभरती हुई शिष्या अनन्या गौड़ ने कथक की लावण्यता को प्रस्तुत किया। उन्होंने आमद, बंदिश, तोड़े, तत्कार और लयकारी में अपनी महारत को प्रस्तुत किया। तीसरी प्रस्तुति में भोपाल की सुश्री अमिता खरे ने नृत्य नाटिका शकुंतला को मंचित किया। महाकवि कालिदास रचित अभिज्ञानशाकुंतलम् में शकुंतला के जीवनकाल, आश्रम में उपस्थिति, यौवन, प्रेम, विरह के दृश्यों को उन्होंने नृत्य से साकार कर दिखाया।
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(Udaipur Kiran) / ललित ज्वेल