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पाकिस्तान के बलोचिस्तान में न्यायेतर हत्याओं में शामिल अधिकारी कठोर दंड के हकदारः सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अतहर मिनल्लाह

पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट। फोटो - इंटरनेट मीडिया

इस्लामाबाद, 24 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । पाकिस्तान उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति अतहर मिनल्लाह ने कहा है कि बलोचिस्तान में न्यायेतर हत्याओं, जबरन गायब किए जाने और हिरासत में यातना देने में शामिल कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लोग कानून के तहत कड़ी से कड़ी सजा के हकदार हैं। ऐसा करना लोकतांत्रिक समाज में सबसे असहनीय अपराध है। यह अपराध संविधान और उसमें प्रदत्त मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के सबसे बुरे रूप हैं।

द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति मिनल्लाह ने हालिया एक फैसले पर असहमति जाते हुए अपने नोट में लिखा, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और उनके सदस्यों के इस तरह के कृत्यों और आचरण को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। ऐसे मामलों में अपराध सिद्ध होने पर कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए। उन्होंने फ्रंटियर कॉर्प्स (एफसी) के एक सैनिक की मौत की सजा को बरकरार रखा। हालांकि, बहुमत वाले न्यायाधीशों ने उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।

केस रिकॉर्ड के अनुसार, एक युवा विश्वविद्यालय छात्र मोहम्मद हयात अर्धसैनिक बल के सशस्त्र सदस्यों की हिरासत में रहते हुए वीभत्स, क्रूर और स्तब्ध कर देने वाले तरीके से अपनी जान गंवा बैठा। यह बलोचिस्तान के तुर्बत जिले में एक निर्दोष नागरिक की न्यायेतर हिरासत में हत्या का मामला था। न्यायमूर्ति मिनल्लाह ने कहा कि ऐसे समाज में जहां जबरन गायब किए जाने, अत्यधिक बल प्रयोग, सत्ता के दुरुपयोग, न्यायेतर हत्याओं और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित शिकायतें व्यापक हैं। नागरिकों के विरुद्ध किए गए अपराधों के लिए दंडमुक्ति प्रदान करना कानून के उल्लंघन का सबसे गंभीर रूप बन जाता है।

उन्होंने कहा, जब कोई नागरिक किसी कानून प्रवर्तन एजेंसी या उसके अधिकारियों के आक्रमण का शिकार होता है तो यह गंभीरता और बढ़ जाती है। संविधान शासित समाज में ऐसा कोई भी कृत्य या आचरण असहनीय है, जब कानून प्रवर्तनकर्ता कानून को ही अपने हाथ में ले लेते हैं और खुद को न्यायाधीश और जल्लाद की भूमिका में ले लेते हैं, तो कानून का शासन नष्ट हो जाता है। इस मामले में ठीक यही हुआ।

दोषी एफसी सदस्य के खिलाफ नागरिक अदालत में मुकदमे के संबंध में आपत्ति का जवाब देते हुए, न्यायमूर्ति मिनल्लाह ने कहा कि ऐसे मुकदमों को सैन्य अदालतों में भेजना न तो जनहित में है और न ही राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में, जहां नागरिकों के अधिकार शामिल हैं। उन्होंने कहा, संविधान की योजना स्पष्ट रूप से सशस्त्र बलों को नागरिकों से जुड़े विवादों से बचाने की परिकल्पना करती है। संविधान अनुच्छेद 245 के तहत सशस्त्र बलों की भूमिका और कार्यों को बाहरी आक्रमण से पाकिस्तान की रक्षा तक सीमित करता है और कानून के अधीन, आह्वान किए जाने पर नागरिक शक्ति की सहायता के लिए कार्य करने की अनुमति देता है।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अर्धसैनिक बलों में जनता का विश्वास, खासकर जब उनकी कमान सेवारत सैन्य अधिकारियों के हाथों में हो, उनके संवैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, इस मामले में एक युवा विश्वविद्यालय छात्र पाकिस्तानी सेना एक अर्धसैनिक बल के एक सदस्य की न्यायेतर हिरासत में हत्या का शिकार हुआ। न्यायमूर्ति ने कहा कि एफसी बलोचिस्तान एक विशेष कानून फ्रंटियर कॉर्प्स अध्यादेश, 1959 के तहतसत्र न्यायालय को मुकदमा चलाने का पूरा अधिकार था। इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए एक सैन्य अदालत में मुकदमा चलाना जनहित के विरुद्ध, अवैध और असंवैधानिक होता।

सजा के सवाल पर न्यायमूर्ति मिनल्लाह ने लिखा कि निवारक दंड न केवल अपराध की गंभीरता को दर्शाने के लिए आवश्यक है, बल्कि समाज की सुरक्षा के लिए एक निवारक उपाय के रूप में अपराधी को दूसरों के लिए एक उदाहरण बनाने के लिए भी आवश्यक है। उन्होंने कहा, पूर्व योजनाबद्ध और क्रूरतापूर्वक किए गए जघन्य अपराधों में कोई नरमी नहीं बरती जानी चाहिए। मृत्युदंड समाज में भय पैदा करता है ताकि कोई भी हत्या करने की हिम्मत न करे। जब अपराध किसी भी संदेह से परे सिद्ध हो जाए, तो नरम रुख अपनाने से शांति भंग होती है और अराजकता का द्वार खुल जाता है। अदालतों को जहां आवश्यक हो, अधिकतम सजा देने में संकोच नहीं करना चाहिए।

न्यायमूर्ति मिनल्लाह ने कहा कि मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने के लिए ठोस कारणों की आवश्यकता होती है। उन्होंने जोर देकर कहा, दंड अपराध की गंभीरता के अनुरूप होना चाहिए। न्यायमूर्ति मिनल्लाह ने फ्रंटियर कोर की वैधानिक भूमिका पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि 1959 के अध्यादेश के अध्ययन से पता चलता है कि फ्रंटियर कोर बलोचिस्तान की स्थापना मुख्य रूप से पाकिस्तान की बाहरी सीमाओं की रक्षा और प्रशासन के लिए की गई थी। उन्होंने कहा कि एक वर्दीधारी अनुशासित बल के रूप में फ्रंटियर कोर के कर्मियों से नागरिकों के साथ व्यवहार करते समय अनुकरणीय आचरण, व्यावसायिकता और ईमानदारी बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है।

उन्होंने निष्कर्ष निकाला, एफसी के प्रशिक्षित सदस्य के रूप में अपीलकर्ता से पीड़ित की रक्षा करने की अपेक्षा की गई थी, न कि उसे मारने की। उसे जारी किया गया हथियार केवल रक्षा के लिए था, नागरिकों के विरुद्ध गैरकानूनी उपयोग के लिए नहीं।

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(Udaipur Kiran) / मुकुंद

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