
नक्सली संगठन के शीर्ष नेतृत्व में अब देवजी, गणपति, माड़वी हिड़मा, चंद्रन्ना और बारसे देवा जैसे गिने-चुने नक्सली ही बचे
जगदलपुर, 19 अक्टूबर(Udaipur Kiran News) । छत्तीसगढ़ में नक्सली संगठन के कमजोर पड़ने के कारण अब दूसरे राज्यों से नक्सलियों को यहां भेजा जा रहा है। आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, झारखंड और केरल के संगठन से जुड़े लोग छत्तीसगढ़ पहुंच रहे हैं। नक्सलियों के बड़े नेता सुरक्षा बलों के लगातार ऑपरेशन की वजह से हथियार छिपाकर यहां के बड़े शहरों में रहने लगे हैं। इस बाबत बस्तर संभाग के आईजी ने कहा कि पुलिस और सुरक्षा एजेंसी सतर्क हैं, वे
निगरानी और जांच में जुटी हुई हैं। उनका मकसद नक्सलवाद का समूल खात्मा है।
पुलिस सूत्रों का कहना है छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के सीमाई इलाकों में ये नक्सली झुग्गी-बस्तियों और लेबर क्वार्टर में रहकर सरकार की गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं। हालांकि कई बड़े नेता राज्य से बाहर चले गए हैं लेकिन बाकी बचे हुए छोटे कैडर सदस्य भी शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। वे छिपकर संगठन को फिर से मजबूत करने की कोशिश में हैं। छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के सीमाई इलाके अब इन नक्सलियों के नए ठिकाने बन गए हैं। उन्होंने इन इलाकों को अपने छिपने की सुरक्षित जगहें बना लिया है।
एक तरफ जहां छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में बीते तीन दिनों के भीतर पोलित ब्यूरो सदस्य एवं सीआरबी सचिव भूपति और केंद्रीय समिति सदस्य तथा दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (डीकेएसजेडसी) प्रवक्ता रूपेश उर्फ विकल्प सहित 271 माओवादियों के सामूहिक आत्मसमर्पण से नक्सली संगठन की कमर टूट चुकी है वहीं दूसरी ओर बस्तर संभाग में माओवादी हिंसा का अंतिम अध्याय प्रारंभ हो गया है। बस्तर, कोंडागांव और दंतेवाड़ा जिले पहले ही माओवादी प्रभाव से मुक्त घोषित हो चुके हैं। भूपति और रूपेश के समर्पण से माड़ व उत्तर बस्तर डिविजन के साथ महाराष्ट्र में गढ़चिरौली डिविजन अब खत्म हो चुका है।
नक्सली संगठन की राजनीतिक और सैन्य दोनों इकाइयों की रीढ़ टूट चुकी है। नक्सलियाें का प्रभाव अब केवल दक्षिण बस्तर के बीजापुर और सुकमा जिलों के सीमावर्ती इलाकों तक सिमट गया है। यानि बस्तर का आधे से अधिक भूभाग नारायणपुर, कांकेर और अबूझमाड़ के जंगलों से अब नक्सलवाद खत्म हो चुका है। बस्तर के माड़वी हिड़मा, एवं बारसे देवा की समाप्ति के साथ ही पूरा बस्तर नक्सल मुक्त हाे जायेगा। अब नक्सली संगठन के इस समिति के अधीन सुकमा का दक्षिण बस्तर डिवीजन (कोंटा, केरलापाल, जगरगुंडा, पामेड़) और बीजापुर का पश्चिम बस्तर डिवीजन (गंगालूर, मद्देड़, नेशनल पार्क क्षेत्र) के लगभग 300 माओवादी ही बचे हैं।
बस्तर आईजी सुंदरराज पी. ने रविवार को कहा कि बस्तर के माड़वी हिड़मा एवं बारसे देवा के खात्मे के साथ ही पूरा बस्तर नक्सल मुक्त हाे जायेगा। फिलहाल पोलित ब्यूरो सदस्य और सेंट्रल मिलिट्री कमीशन प्रमुख देवजी, पूर्व महासचिव गणपति, केंद्रीय समिति सदस्य एवं बटालियन प्रभारी हिड़मा, तेलंगाना स्टेट कमेटी सचिव चंद्रन्ना और डीकेएसजेडसी सदस्य बारसे देवा को संगठन के शीर्ष नेतृत्व के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने कहाकि बस्तर से नक्सलवाद के सफाए की दिशा में तेजी से कदम बढ़ रहे हैं।
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार फिलहाल पूर्वी और उत्तरी बस्तर में कोई बड़ा नक्सली लीडर सक्रिय नहीं दिख रहा है। अन्य इलाके में देव जी, हिड़मा समेत कुछ गिने-चुने नक्सली ही बचे हैं, जो पुलिस के रिकॉर्ड में दर्ज हैं। लेकिन वे भी राज्य से बाहर चले गए हैं। इन अभियानों में 477 माओवादी मारे गए, 2321 ने आत्मसमर्पण किया, और 1785 गिरफ्तार हुए। संगठन के प्रमुख चेहरे बसवा राजू, गुडसा उसेंडी, कोसा, सुधाकर और चलपति ढेर हो चुके हैं। वहीं बीते 22 महीनों में 64 नए कैंप माओवादियों के कोर क्षेत्र में स्थापित किए गए जिसके परिणाम स्वरूप बस्तर अब नक्सलवाद के विरूद्ध निर्णायक मोड़ पर खड़ा है।
बस्तर आईजी का कहना है कि माड़, उत्तर बस्तर और गढ़चिरौली डिवीजन के समर्पण के बाद माओवादी संगठन की ताकत आधे से भी कम रह गई है। आने वाले कुछ महीने चुनौतीपूर्ण होंगे, विकास कार्यों को गति देते हुए सुरक्षा बल सर्चिंग अभियान जारी रखेंगे। पुलिस आत्मसमर्पण कर चुके नक्सलियों से जानकारी लेकर गांव-गांव जाकर यह जांच करेगी कि कहीं नक्सली संगठन में नई लीडरशिप तो नहीं उभर रही है। उन्हाेंने कहा कि दक्षिण और पश्चिम बस्तर में नए कैंप खोले जा रहे हैं, ताकि मार्च 2026 तक माओवादियों का समूल सफाया किया जा सके । बस्तर आईजी ने माओवादियों को मुख्यधारा में लौटने की अपील की है।
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(Udaipur Kiran) / राकेश पांडे
