
–कुछ अपवादित स्थिति में ही याचिका पर जारी किया जा सकता है समादेश
प्रयागराज, 17 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि रिट याचिका में विवादित तथ्यों का विचारण नहीं किया जा सकता। संविदात्मक विवादों में पक्षकार सिविल कोर्ट या मध्यस्थता अधिकरण में जा सकते हैं।
याचिका अपवाद स्वरूप उसी दशा में समादेश जारी करने के लिए दाखिल की जा सकती है जहां बकाया राशि स्वीकार की गई हो और फिर भी भुगतान नहीं किया जा रहा हो। कोर्ट ने तथ्यात्मक विवाद को लेकर दाखिल याचिका पर हस्तक्षेप से इंकार करते हुए खारिज कर दी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाड़िया तथा न्यायमूर्ति विवेक सरन की खंडपीठ ने करमेश कुमार श्रीवास्तव प्रोपराइटर वीनस ट्रेडिंग कार्पोरेशन की याचिका पर दिया है।
याची का कहना था कि 23 दिसम्बर 11 को उसे कानपुर की मलिन बस्तियों मदारपुर व जन्ना, रूमा में ओवर हेड टैंक, सी सी रोड, बीबर लाइन, बीबर चेंबर निर्माण का काम दिया गया। जिसका पूरा भुगतान नहीं किया गया। बकाया राशि दिलाया जाय।
विपक्षी निगम की तरफ से कहा गया कि काम का भुगतान किया जा चुका है। ऐसा कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं दिया गया है कि जिससे पता चले कि कुछ बकाया रह गया है। यह भी तथ्य नहीं है कि विपक्षी ने बकाया भुगतान स्वीकार किया हो।
इस पर कोर्ट ने कहा भुगतान बाकी है या हो चुका है, संविदागत विवादित तथ्यों का मसला है, जिसे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर निपटारा नहीं किया जा सकता और कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
