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अनिल अंबानी को राहत, अतिरिक्त श्रम आयुक्त की अभियोजन मंजूरी व प्रसंज्ञान आदेश रद्द

हाईकाेर्ट

जयपुर, 15 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । राजस्थान हाईकोर्ट ने रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और इसके नॉन एग्जीक्यूटिव चेयरमैन अनिल अंबानी सहित एक अन्य ओंकार रावत को राहत देते हुए इनके खिलाफ अतिरिक्त श्रम आयुक्त, जयपुर के 9 जून 2017 को जारी अभियोजन मंजूरी के आदेश और सीजेएम कोर्ट के प्रसंज्ञान आदेश को रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि प्रार्थियों के खिलाफ मामले में दी गई अभियोजन मंजूरी और उसके आधार पर लिए प्रसंज्ञान आदेश बिना विचार व विधिक आधार पर लिया है। ऐसे में इन दोनों आदेशों को निरस्त किया जाना उचित होगा। जस्टिस आनंद शर्मा ने यह आदेश अनिल अंबानी व अन्य की याचिका पर दिए। अदालत ने कहा कि ऐसी कार्यवाही न्याय प्रणाली पर अनावश्यक भार डालती है और निर्दोष व्यक्तियों के लिए मानसिक उत्पीड़न का कारण बनती है। उन्हें एक ऐसे फौजदारी मुकदमे में फंसाया गया, जो न तो कानून के अनुसार बनता है और न ही तथ्यों पर आधारित है। प्रार्थियों की ओर से अधिवक्ता एके पारीक ने कहा कि प्रसंज्ञान और अभियोजन स्वीकृति पूरी तरह से अवैध व मशीनी अंदाज में दी है। लेबर कोर्ट के आदेश में स्पष्ट है कि बी.एस.ई.एस. लिमिटेड का इसमें कोई दायित्व नहीं है। कानूनी दायरे से बाहर होने के बावजूद उन्हें फंसाया है, जो कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

मामले के अनुसार शंभू सिंह बी.एस.ई.एस. लिमिटेड कंपनी में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पद पर था। कंपनी के उन्हें सेवा से हटाने को 1999 में लेबर कोर्ट में चुनौती दी गई। इस दौरान शंभूसिंह और एम एस ट्रानसेक्स सर्विस प्राइवेट लिमिटेड के बीच समझौता हुआ, जिसके तहत उन्हें दिल्ली कार्यालय में पुन: नियुक्ति देनी थी। तब शंभू सिंह ने बकाया वेतन की मांग छोड़ने पर सहमति जताई। यह तय हुआ कि उनका बी.एस.ई.एस. लिमिटेड से कोई संबंध नहीं होगा, लेकिन 2004 में ट्रानसेक्स सर्विसेज ने दोबारा शंभूसिंह की सेवाएं खत्म कर दीं। तब उन्होंने 2005 में एक नया दावा किया। लेबर कोर्ट-प्रथम ने 2015 में उसके मामले में अवार्ड देते हुए कहा कि शंभू सिंह और बी.एस.ई.एस. लिमिटेड के बीच नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं है, बल्कि विवाद ट्रानसेक्स सर्विस प्राइवेट लिमिटेड से संबंधित है। इसके बावजूद भी 9 जून 2017 को अतिरिक्त श्रम आयुक्त जयपुर ने रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर व अनिल अंबानी के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति दे दी। जिस पर 11 सितंबर 2017 को मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट, जयपुर ने उनके खिलाफ औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 29 सहपठित धारा 34 के तहत प्रसंज्ञान लिया।

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(Udaipur Kiran)

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