Madhya Pradesh

भारत की पहचान आध्यात्मिक दृष्टिकोण में निहित : डॉ. मनमोहन वैद्य

भारत की पहचान,भारत का आध्यात्मिक दृष्टिकोण: डॉ.मनमोहन वैद्य

उज्जैन, 13 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । अवंतिका विश्वविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय यंग थिंकर्स कॉन्क्लुएंस के समापन दिवस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय टोली सदस्य एवं प्रख्यात चिंतक डॉ. मनमोहन वैद्य ने “भारत की भारतीय अवधारणा” विषय पर अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने कहा कि भारत की वास्तविक पहचान उसका आध्यात्मिक दृष्टिकोण है, जिसे आज संपूर्ण विश्व अपनाने की दिशा में अग्रसर है। भारत सदैव से एक ऐसा राष्ट्र रहा है, जिसने भौतिक प्रगति के साथ-साथ अध्यात्म और मानवता को भी समान रूप से महत्व दिया है।

डॉ. वैद्य ने अपने संबोधन में कहा कि भारत प्राचीन काल से ही उद्योग प्रधान समाज रहा है। यहाँ के प्रत्येक घर को किसी न किसी कौशल का शिक्षण केंद्र माना जाता था, जहाँ ज्ञान, कला और तकनीक पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजे और विकसित किए जाते रहे। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज की यह विशेषता रही है कि उसने केवल अर्थार्जन को ही जीवन का लक्ष्य नहीं माना, बल्कि उसे लोककल्याण से जोड़ा।

उन्होंने अपने उद्बोधन में यह भी स्पष्ट किया कि “हिंदू कोई संकीर्ण धर्म नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक मार्ग, ‘वे ऑफ लाइफ’ है।” इस जीवन पद्धति में समरसता, सहअस्तित्व और सार्वभौमिक कल्याण का भाव निहित है। डॉ. वैद्य ने कहा कि भारत की संस्कृति में विविधता में एकता का दर्शन है, जहाँ विभिन्न विचारधाराओं के बावजूद सब एक सूत्र में बंधे रहते हैं।

डॉ. वैद्य ने अपने वक्तव्य में प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था और उद्योगों की समृद्ध परंपरा पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि भारत की आत्मनिर्भरता का आधार उसकी ग्राम व्यवस्था और लघु उद्योगों की सुदृढ़ संरचना थी। यह व्यवस्था समाज के हर वर्ग को आत्मसम्मान और रोजगार से जोड़ती थी।

वर्तमान समय को उन्होंने भारत के लिए स्वर्णिम काल बताते हुए कहा कि आज विश्व भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहा है। भारत की युवा पीढ़ी में असीम संभावनाएँ हैं, और यदि वे अपनी मूल अस्मिता तथा परंपरागत मूल्यों को संरक्षित रखें, तो भारत पुनः विश्वगुरु के स्थान पर प्रतिष्ठित हो सकता है।

अपने सारगर्भित संबोधन के अंत में डॉ. वैद्य ने युवाओं का आह्वान किया कि वे भारत की मौलिक सोच, सांस्कृतिक मूल्यों और आत्मनिर्भर अर्थदृष्टि को समझें और उसे व्यवहार में लाएँ। उन्होंने कहा कि यही मार्ग भारत को न केवल आर्थिक, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी सशक्त बनाएगा।

उल्‍लेखनीय है कि अवंतिका विश्वविद्यालय में आयोजित यह तीन दिवसीय सम्मेलन युवा चिंतकों और विचारकों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच सिद्ध हुआ है, जहाँ भारत की परंपरा, विचार और आधुनिकता के समन्वय पर गहन विमर्श हुआ। समापन सत्र में डॉ. वैद्य का उद्बोधन उपस्थित जनसमूह के लिए प्रेरणास्रोत बना है ।

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(Udaipur Kiran) / ललित ज्‍वेल

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