
हरिद्वार, 12 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । श्रीगीता विज्ञान आश्रम के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज ने कहा है कि सनातन धर्म प्रकृति का सबसे बड़ा संरक्षक है, जो प्रकृति को पूजता भी है और उसका संरक्षण तथा संवर्धन भी करता है, यह धर्म पृथ्वी को परमेश्वर का प्रतिरूप मानकर पूजता है।
स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती रविवार काे अपने आश्रम में अपने भक्ताें काे संबाेधित कर रहे थे। स्वामी विज्ञानानंद ने
कहा कि मानव प्रकृति का सबसे ज्यादा बुद्धिमान प्राणी है, जिसने भगवत कृपा पाकर कर्म का निर्धारण करने के लिए धर्म की स्थापना की। विश्व का यह संपूर्ण धराधाम विभिन्न धर्मों का गुलदस्ता है और किसी भी धर्म ने गलत आचरण का संदेश नहीं दिया, लेकिन सनातन धर्म प्रकृति का सबसे बड़ा रक्षक है। सनातन धर्म के अनुयायी प्रकृति की पूजा भी करते हैं और संरक्षण एवं संवर्धन भी करते हैं। उन्हाेंने कहा कि प्रकृति की पूजा और प्रकृति के संरक्षण का जितना कार्य सनातन धर्म में होता है उतना किसी अन्य धर्म में नहीं होता है। सनातन धर्म की उत्पत्ति ही प्रकृति की गोद से हुई है जिसे हमारे ऋषि मुनियों ने आवादी क्षेत्र से दूर जंगलों एवं पर्वतों की कंदराओं में तप और ध्यान लगाकर स्थापित किया। सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयरू का संदेश देने वाला सनातन धर्म प्रकृति में प्रभु का दर्शन करते हुए ही उसकी पूजा और पोषण का काम करता है।
स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती ने कहा कि सनातन धर्म में पांचों तत्वों की पूजा भी होती है और संरक्षण का भी विधान है। पृथ्वी को धरती माता इसलिए भी कहा जाता है कि धरती मां की गोद से ही वनस्पति एवं जीवधारी की उत्पत्ति होती है। सनातन धर्म अग्नि को देवता मानकर उसकी पवित्रता को प्रणाम करता है, अग्नि प्रकृति का वह तत्व है जो सृजन भी करता है और संहार भी। अग्नि से ही भोजन और भवनो का निर्माण होता है, अग्नि को साक्षी मानकर ही सात फेरे लेकर व्यक्ति वैवाहिक बंधन में बंधता है तो अग्नि से ही व्यक्ति का अंतिम संस्कार भी होता है। अग्नि वह शक्तिशाली देवता है जिसमें शुद्ध घृत एवं प्राकृतिक जड़ी बूटियों की आहुति देकर प्राकृतिक वातावरण को पवित्र किया जाता है, सनातन धर्म इसका पुजारी भी है और संरक्षणदाता भी है।
उन्हाेंने कहा कि जल ही जीवन का आधार है और जल के अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जल है तो कल है, जल ही जीवन है, इन सभी प्रति वाक्यों का जन्मदाता सनातन धर्म ही है, जिसने जल संरक्षण का मार्गदर्शन किया और वर्तमान सरकारें भी जल संरक्षण पर कार्य कर रही हैं। अतः हम सबको जल का दुरुपयोग रोक कर जल संरक्षण पर कार्य करना चाहिए।
स्वामी ने कहा कि प्रकृति के संरक्षण के लिए वायु को वरदान माना जाता है, ऑक्सीजन को प्राणवायु कहते हैं जो वनस्पति से जीवधारियों को प्राप्त होती है। अधिकांश वृक्ष दिन में ऑक्सीजन और रात्रि में कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करते हैं लेकिन पीपल और वटवृक्ष दिन-रात ऑक्सीजन का ही निर्माण करते हैं। इसीलिए दोनों वृक्षों को सनातन धर्म में देवता मानकर इसलिए पूजा जाता है कि कोई इनको काटे ना। उन्हाेंने कहा कि प्राणियों में सद्भावना हो और विश्व का कल्याण हो, सनातन धर्म की यही विचारधारा है जिससे संपूर्ण सृष्टि का कल्याण होता है।
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(Udaipur Kiran) / डॉ.रजनीकांत शुक्ला
