
भोपाल, 12 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय में जारी पुतुल समारोह का समापन आज रविवार को एक शानदार प्रस्तुति के साथ होगा। यह समारोह बीते कुछ दिनों से लोक और पारंपरिक नाट्यकला के विविध रंगों से सराबोर रहा है। अंतिम दिन दर्शकों के लिए विशेष आकर्षण रहेगा नई दिल्ली के प्रसिद्ध कठपुतली कलाकार अशोक लाल और उनके साथियों का पारंपरिक कठपुतली नाट्य ‘सीता हरण’, जो शाम 6:30 बजे संग्रहालय के मुक्ताकाश मंच पर प्रस्तुत किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि इस प्रस्तुति का महत्व इसलिए है, क्योंकि यह भारतीय लोक परंपरा और नाट्यकला की उस समृद्ध धरोहर को भी सामने लाती है जो पीढ़ियों से जीवित रही है। ‘सीता हरण’ की कहानी रामायण के उस महत्वपूर्ण प्रसंग पर आधारित है, जिसमें रावण, देवी सीता का हरण करता है और कथा आगे चलकर धर्म-अधर्म के संघर्ष का प्रतीक बन जाती है। इस पारंपरिक कथा को लकड़ी की पुतलियों, मधुर संगीत, संवाद और प्रकाश प्रभावों के माध्यम से मंच पर जीवंत किया जाता है।
अशोक लाल, जो कठपुतली कला के अनुभवी कलाकारों में से एक हैं, अपने साथियों के साथ इस कला को संरक्षित कर रहे हैं, बल्कि नई पीढ़ी तक पहुँचाने का कार्य भी कर रहे हैं। उनकी टीम आधुनिक तकनीक के साथ पारंपरिक शैली का ऐसा मिश्रण पेश करती है जिससे दर्शक एक नए अनुभव से गुजरते हैं। मंच पर प्रयुक्त संगीत, प्रकाश और ध्वनि के संयोजन से यह प्रस्तुति एक दृश्य-श्रव्य आनंद में परिवर्तित हो जाती है।
इस संबंध में जनजातीय संग्रहालय की ओर से मीडिया को दी गई जानकारी में बताया गया कि इस पुतुल समारोह का उद्देश्य यही रहा है कि देश के विभिन्न हिस्सों की लोककलाओं और कठपुतली परंपराओं को एक मंच पर लाया जाए, ताकि लोग उनकी विविधता और सुंदरता को नजदीक से देख सकें। बीते कुछ दिनों में यहां विभिन्न राज्यों के कलाकारों ने पारंपरिक पुतुल नाट्य, लोकगीत, नृत्य और नाट्य प्रस्तुतियाँ दीं, जिन्हें दर्शकों ने बेहद सराहा। साथ ही कहा गया है कि मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय, जो हमेशा से भारतीय लोकसंस्कृति के संरक्षण और प्रचार-प्रसार का केंद्र रहा है, इस तरह के आयोजनों के माध्यम से नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम कर रहा है। आयोजकों के अनुसार, ‘सीता हरण’ का मंचन समारोह का भव्य समापन होगा, जिसमें कला, संगीत और तकनीक का अद्भुत संगम देखने को मिलेगा।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में दर्शकों के आने की उम्मीद है। संग्रहालय परिसर को विशेष रूप से सजाया गया है और मुक्ताकाश मंच को पारंपरिक लोक तत्वों से सुसज्जित किया गया है, ताकि प्रस्तुति का प्रभाव और गहराई से महसूस किया जा सके। आपको बतादें कि इस पुतुल समारोह का शुभारंभ आठ अक्टूबर को हुआ था जिसका कि आज रविवार को समापन है।
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(Udaipur Kiran) / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
