
मंदसौर, 11 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में खांसी के सिरप पीने से हुई बच्चों की मौत ने स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े कर दिए है। इधर बात करें मंदसौर की तो बच्चों की जान भी जोखिम में होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसका कारण है झोलाछाप डॉक्टर और बिना डॉक्टर के पर्चे से मिलने वाली दवाईयां।
छिंदवाड़ा में बच्चों की मौत किडनी पर असर करने से हुई। किसी भी दवा का डोज किस मरीज को कितने मात्रा में दिया जाता है, उसके लिए विशेषज्ञ चिकित्सक जांच और वजन सहित अन्य मापदंडों के आधार पर तय करते हैं। लेकिन झोलाछाप डॉक्टर और बिना पर्चे के मिलने वाली दवाईयां तो एक जैसी हो सकती है, लेकिन डोज की मात्रा का खेल जीवन खराब कर सकता है।
छिंदवाड़ा जिले में खांसी का सिरप पीने से 15 से अधिक बच्चों की मौत ने स्वास्थ्य व्यवस्था की संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रारंभिक जांच के अनुसार, बच्चों की किडनी सिरप के अत्यधिक सेवन के कारण फेल हो गई। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों को किसी भी दवा की खुराक केवल उनकी आयु, वजन और चिकित्सीय जांच के आधार पर दी जानी चाहिए। लेकिन जिले में कई झोलाछाप डॉक्टर खुलेआम दवा और इंजेक्शन दे रहे हैं, जबकि उनके पास किसी भी प्रकार की मान्यता प्राप्त डिग्री नहीं है। इन डॉक्टरों को यह भी पता नहीं होता कि बच्चे या अन्य मरीजों को कितनी खुराक दी जानी चाहिए, जिससे जानलेवा परिस्थितियां उत्पन्न होने का खतरा बना हुआ है। स्वास्थ्य विभाग और शासन के निदेर्शों के बावजूद झोलाछाप डॉक्टरों पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या पहले से आम रही है, लेकिन हालात इतने गंभीर हैं कि मंदसौर जिला मुख्यालयों में भी कई झोलाछाप डॉक्टर दुकानदारी कर रहे हैं और बच्चों सहित मरीजों का इलाज कर रहे हैं।
मेडिकल से बिना पर्चे की दवाईयां
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोगों में भी जागरुकता का अभाव देखा जा रहा है। शिशु रोग विशेषज्ञ जहां वजन और उम्र के अलावा अन्य जांच के आधार पर दवाईयां देते हैं। वहीं वर्तमान में लोग सर्दी, खासी और बूखार जैसी समस्या के लिए सीधे मेडिकल पहुंच रहे हैं। लक्षणों के आधार पर मेडिकल से बिना डॉक्टर के पर्चे से दवाईयां दी जा रही है। जिससे कहीं न कहीं खतरा मंडरा रहा है। वहीं जिला ड्रग इंस्पेक्टर को जिस तेजी से इस ओर कार्य करना चाहिए वह उनके द्वारा नहीं किया जा रहा है अभी मंदसौर नगर के मेडीकलों की जांच भी पूरी तरह से नहीं हो पाई है।
गंभीर बीमारी का पता चलता है बाद में…
पीलिया, मलेरिया, डेंगू सहित अन्य गंभीर बीमारियों की शुरूआत सर्दी, खासी, बूखार, पेट की समस्याओं के साथ ही होती है। जहां शिशु रोग विशेषज्ञ मरीज को देखते ही जांच रिपोर्ट से पहले ही लक्षणों के आधार पर उपचार शुरू कर देते हैं। वहीं मेडिकल की बिना पर्चे की दवाईयां या झोलाछाप डॉक्टर सिर्फ गंभीर बीमारी के शुरूआती लक्षणों के उपचार से संंबंधित दवाईयां दे रहे हैं। जब बीमारी नियंत्रण के बाहर होने लगती है, उसके बाद विशेषज्ञ चिकित्सकों के पास लोग पहुंचते हैं।
बच्चे की उम्र और वजन के मान से दवाईयां
शिशु रोग विशेषज्ञ एवं पूर्व सीएमएचओ डॉ केएल राठौर का कहना है कि किसी भी दवा का डोज बच्चे की उम्र और वजन पर निर्भर करता है। अगर जरुरत से ज्यादा डोज अगर दिया जाए तो किडनी पर असर कर सकता है। इसके अलावा कम डोज में बीमारी से निजात नहीं मिल सकती। लक्षणों के आधार पर दवाइयों का अपने हिसाब से सेवन खतरनाक साबित हो सकता है।
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(Udaipur Kiran) / अशोक झलोया
