-रुचिका गिरहोत्रा और शिवानी भटनागर केस बन चुके राष्ट्रीय सुर्खियां
चंडीगढ़, 10 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । हरियाणा में आईपीएस अधिधारी वाई पूरन कुमार द्वारा आत्महत्या किए जाने के बाद प्रदेश के करीब एक दर्जन आईपीएस अधिकारी विवादाें में आ गए हैं। यह पहला माैका नहीं है जब प्रदेश में खाकी का दामन दागदार हुआ है। इससे पहले भी कई मामले ऐसे हुए हैं,जिनकी वजह से हरियाणा के पुलिस अधिकारी चर्चाओं में रहे हैं। हरियाणा में रुचिका गिरहोत्रा केस, शिवानी भटनागर मर्डर, फर्जी मुठभेड़ और ट्रांसफर-पोस्टिंग में पैसे के खेल जैसे कई पुराने मामले बताते हैं कि हरियाणा पुलिस की ऊपरी परत में सबकुछ उतना पारदर्शी नहीं है। पूरन कुमार के 8 पेज के सुसाइड नोट ने पुलिस और प्रशासन, दोनों में हलचल मचा दी है। उन्होंने सीधे तौर पर कुछ वरिष्ठ अधिकारियों पर उत्पीडऩ, जातिगत भेदभाव और मानसिक प्रताड़ना के आरोप लगाए।
1990 में हरियाणा की एक किशोरी रुचिका गिरहोत्रा का नाम पूरे देश ने सुना। 14 वर्षीय इस छात्रा के साथ तत्कालीन डीजीपी एसपीएस राठौर द्वारा छेड़छाड़ का आरोप लगा। जब परिवार ने शिकायत की तो पुलिस मशीनरी ने पीड़िता और उसके परिवार को ही निशाना बना दिया। रुचिका के भाई पर झूठे केस, पिता की नौकरी पर असर, और लगातार उत्पीडऩ ने आखिरकार रुचिका को 1993 में आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया। मामला 19 साल तक चला। 40 बार सुनवाई टली, लेकिन आखिर 2009 में सीबीआई कोर्ट ने राठौर को दोषी ठहराया। सजा महज छह महीने की, जिसने न्याय व्यवस्था पर भी सवाल उठाए। यह केस हरियाणा पुलिस के इतिहास का सबसे बड़ा नैतिक झटका था, जिसने ‘वर्दी में अहंकार’ और ‘अधिकारों के दुरुपयोग’ की गहरी बहस को जन्म दिया।
23 जनवरी, 1999 दिल्ली के पूर्वी इलाके में पत्रकार शिवानी भटनागर अपने दो महीने के बेटे के साथ घर में अकेली थीं। तभी उनकी बेरहमी से हत्या कर दी गई। जांच ने देश को चौंका दिया, क्योंकि इस मामले में हरियाणा कैडर के आईपीएस रविकांत शर्मा को मुख्य आरोपित बताया गया। वे प्रधानमंत्री कार्यालय में तैनात रह चुके थे। 2008 में दिल्ली की एक अदालत ने शर्मा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह किसी आईपीएस अधिकारी के खिलाफ हत्या का पहला दोषसिद्धि मामला था। हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने सबूतों की कमी के चलते उन्हें बरी कर दिया।
हरियाणा पुलिस के कुछ और बड़े नाम भी समय-समय पर विवादों में आए। डीजीपी रहे लछमन दास एक फर्जी एनकाउंटर केस में गिरफ्तार हुए। जेल महानिदेशक रहे रमेश सहगल को विजिलेंस ब्यूरो ने रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा था। हालांकि बाद में उनकी अभियोजन स्वीकृति लंबित रही। एमएस अहलावत पर झूठा हलफनामा दाखिल करने का मामला चला। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें सजा सुनाई थी। अनिल डावरा और श्याम लाल गोयल जैसे अफसरों को भी झूठे बयान और कदाचार के मामलों में जेल की हवा खानी पड़ी।
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(Udaipur Kiran) शर्मा
