Uttar Pradesh

ज्ञान और अभ्यास का अंतर ही प्रत्येक सामाजिक समस्या का मूल : लक्ष्मण आचार्य

पुस्तक का लोकार्पण करते असम के राज्यपाल

— असम के राज्यपाल ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय इतिहास विभाग में राजशेखरसूरी कृत प्रबन्धकोश के हिंदी अनुवाद का किया लोकार्पण

वाराणसी, 09 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । असम के राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य ने कहा कि ज्ञान और अभ्यास का अंतर ही प्रत्येक सामाजिक समस्या का मूल है और प्रबन्धकोश इसे ही अपने उपदेशात्मक इतिहास का केंद्र बनाता है।

राज्यपाल गुरूवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। राज्यपाल ने राजशेखरसूरी कृत प्रबन्धकोश के हिंदी अनुवाद का लोकार्पण कर कहा कि प्रबन्धकोश भारत की सांस्कृतिक विरासत की पुनर्प्राप्ति का प्रयास है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण करना है, जबकि वर्तमान शिक्षा सूचनाओं का ज्ञान कराती है। हालांकि उसका लक्ष्य वास्तविक ज्ञान के द्वारा मानव चरित्र का निर्माण होना चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि इस संदर्भ में विद्वानों द्वारा प्रयास किया जाना आवश्यक है। प्रो. भारद्वाज का ग्रंथ इस दिशा में एक अनूठी पहल है।

राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य ने काशी व असम की सांस्कृतिक एकता के बारे में भी बताया कि यह काल भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण का काल है। भारतीय संस्कृति अयोध्या से आबू धाबी तक अपने प्रभाव का विस्तार कर रही है। लोकार्पित पुस्तक जैन विद्वान राजशेखरसूरी कृत प्रबन्धकोश का 672 वर्षों के उपरांत सर्वप्रथम हिंदी भाषा में प्रो. प्रवेश भारद्वाज ने अनुवाद किया है। इससे पूर्व इस ग्रंथ का कोई भी अंग्रेजी अथवा हिंदी अनुवाद उपलब्ध नहीं था। यह ग्रंथ प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास के कई ऐतिहासिक तथ्यों को प्रकट करती है।

कार्यक्रम में संकाय प्रमुख प्रो. अशोक उपाध्याय ने स्वागत भाषण दिया। प्रो. भारद्वाज ने ग्रंथ का परिचय देते हुए बताया कि इसके अनुवाद के लिए उन्होंने पाली, प्रकृति तथा संस्कृत भाषाओं का अध्ययन किया । यह ग्रंथ 1349 ईस्वी में दिल्ली में लिखा गया था। यह ग्रंथ तुगलक शासन के अधीनस्थ भारत का ऐतिहासिक परिचय देता है। इस ग्रंथ के अनुवाद से इतिहासकारों को प्रमाणिक स्त्रोत की प्राप्ति होगी । जिससे शोध की परिधि का विस्तार होगा। राजशेखर ने मध्यकालीन इतिहास लेखन की परम्परा को तोड़ते हुए इतिहास ग्रंथ को दरबारी राजनीति से मुक्त किया तथा लुप्त होती भारतीय ऐतिहासिक लेखन की परम्परा को पुनर्स्थापित किया। प्रो. भारद्वाज ने बताया राजशेखर के इतिहास लेखन का अनुशीलन करके पं. दीनदयाल उपाध्याय ने शंकराचार्य पर ऐतिहासिक ग्रंथ की रचना की थी। यह ग्रंथ बताता है कि गुजरात के चालुक्य वंश ने काशी विश्वनाथ मंदिर तथा गंगा तीर्थ के निर्माण में 6 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी थी । जो भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।

प्रो. आर. पी. पाठक ने बताया कि भारतीय दर्शन इतिहास तथा चिंतन को अलग-अलग देखना भारतीय ज्ञान परम्परा के साथ न्याय नहीं है। धर्मशास्त्र, नीति शास्त्र व अर्थशास्त्र को एक में समाहित करना भारतीय ज्ञान परम्परा की पहचान है।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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