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जवाहर कला केंद्र: राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह में दिखे देशभर की लोक संस्कृति के अनूठे रंग

जवाहर कला केंद्र: राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह में दिखे देशभर की लोक संस्कृति के अनूठे रंग
जवाहर कला केंद्र: राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह में दिखे देशभर की लोक संस्कृति के अनूठे रंग

जयपुर, 9 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । जवाहर कला केंद्र में जारी 28वें लोकरंग महोत्सव के तीसरे दिन गुरुवार को मध्यवर्ती के मंच पर देशभर के लोक नृत्यों की विविध झलकियां देखने को मिलीं। पारंपरिक वेशभूषा, मनभावन धुनों और ताल से सजी इस शाम ने दर्शकों को लोक संस्कृति के रंगों में सराबोर कर दिया। 28वें लोकरंग के तीसरे दिन पर 7 राज्यों ने लोक नृत्य की विभिन्न शैलियों में 11 प्रस्तुतियां देकर कार्यक्रम को ऊर्जा से भर दिया। लोक रंगों का यह महोत्सव 17 अक्टूबर तक जारी रहेगा।

कार्यक्रम की शुरुआत राजस्थान के लोक कलाकार रुपदास व समूह ने ‘तेरह ताली’ नृत्य से की। मंजीरों की धुन और भक्ति भाव से भरपूर इस प्रस्तुति ने मंच पर भक्तिपूर्ण वातावरण बनाया जिसके बाद असम के कलाकारों ने ‘हाजोंग’ नृत्य प्रस्तुत किया। हाजोंग चोर्खेला समुदाय का उत्सवात्मक लोकनृत्य है, जो प्रकृति और कृषि जीवन से जुड़ा है। युवा कलाकारों ने पारंपरिक वेशभूषा में सामूहिक रूप से नृत्य करते हुए ढोल-ताल की धुन पर गीत गाकर संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने की प्रस्तुति दी।

मणिपुर से आए कलाकारों ने ‘ब्लाइन्ड कटिंग’ की ऊर्जामय प्रस्तुति देते हुए मार्शल आर्ट शैली का प्रदर्शन किया। जिसमें आंखों को पूरी तरह से ढक कर कला की अद्भुत क्षमता से सब्जियों को काटते हुए दर्शकों को रोमांचित किया।

हिमाचल प्रदेश के कलाकारों ने ‘लम्बड़ा’ नृत्य के माध्यम से स्थानीय पर्वों की उल्लासभरी झलक दिखाई। मणिपुर से आए समूह ने ‘थांगटा’ नृत्य प्रस्तुत किया, जो कि एक मार्शल आर्ट फॉर्म भी है। इस नृत्य में कलाकारों ने तलवार और ढाल के साथ शानदार तालमेल और युद्ध जैसी गतियों से रोमांचक प्रस्तुति दी, जिसे देखकर दर्शक उत्साहित हो उठे, स्टिक डांस में ताल और स्टिक का बेहतर संतुलन देखने को मिला।इसके बाद उत्तराखण्ड से आए कलाकारों ने ‘गंगाडू’ नृत्य प्रस्तुत किया, जो पारंपरिक लोककथाओं और सामूहिक आनंद का प्रतीक है।

ओड़िशा का ‘संभलपुरी’ नृत्य अपने रंगीन परिधानों और जोशीली लय के साथ मंच पर छा गया। इसके बाद राजस्थान के गोपाल गीला व समूह ने ‘चंग’ नृत्य प्रस्तुत किया, जिसकी धमाकेदार थाप ने दर्शकों को थिरकने पर मजबूर कर दिया। मणिपुर के ‘काबुई नागा’ नृत्य ने आदिवासी समुदाय की एकता और शक्ति को नृत्य में जीवंत किया। नृत्य में पारंपरिक आदिवासी वेशभूषा और जीवंत तालमेल दिखाई दिया।

पंजाब के कलाकारों ने ‘झूमर’ नृत्य की प्रस्तुति दी, उन्होंने गोल घेरा बनाते हुए ढोल और चिमटे की थाप से फसल, शादी और सामुदायिक उत्सवों का जश्न मनाने का दृश्य प्रस्तुति किया और शाम को और भी उत्साह और जोश से भर दिया। आखिर में राजस्थान की निष्ठा अग्रवाल ने ‘भवाई’ नृत्य प्रस्तुत किया, सिर पर चरी संतुलित कर कलाकारों की अद्भुत लय और संतुलन ने पूरे सभागार से सराहना बटोरी।

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(Udaipur Kiran)

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