Uttrakhand

सीमांत क्षेत्र सशक्त व आत्मनिर्भर होंगे, तभी सीमाएं हाेंगी सुरक्षित: राज्यपाल

कार्यक्रम में राज्यपाल को सम्मानित करते आयोजक।

नई दिल्ली/देहरादून, 7 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह सेनि ने कहा कि उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय राज्य की भौगोलिक स्थिति देश की सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और जल स्रोतों के संरक्षण में अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि विकास और सुरक्षा को अलग-अलग नहीं देखा जा सकता। जब सीमांत क्षेत्र सशक्त और आत्मनिर्भर होंगे, तभी सीमाएं सुरक्षित होंगी।

राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह सेनि मंगलवार को नई दिल्ली में यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। यह कार्यक्रम विदेश मंत्रालय के सामरिक विचार मंच और देश के सबसे प्रतिष्ठित रक्षा संस्थानों में से एक यूएसआई ने आयोजित किया था। राज्यपाल ने भारत की सामरिक दृष्टि में उत्तराखण्ड विकास और सुरक्षा के मार्ग विशेष पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि हिमालयी सीमांत क्षेत्रों का विकास केवल सामाजिक या आर्थिक आवश्यकता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अनिवार्य है। राज्यपाल ने कहा कि सीमांत गांव में सड़क, स्कूल , स्वास्थ्य केंद्र या अन्य मूलभूत सुविधाएं केवल कल्याणकारी कार्य नहीं, बल्कि यह देश की सामरिक सुरक्षा को मजबूत करने वाला कदम है। उन्होंने कहा कि सीमांत विकास अपने आप में रणनीतिक निवारण है।

राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय राज्य की भौगोलिक स्थिति देश की सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और जल स्रोतों के संरक्षण में अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि विकास और सुरक्षा को अलग-अलग नहीं देखा जा सकता। जब सीमांत क्षेत्र सशक्त और आत्मनिर्भर होंगे, तभी सीमाएं सुरक्षित होंगी।

राज्यपाल ने भारत-चीन-नेपाल सीमा से लगे 30 से अधिक गाँवों के अपने दौरों का अनुभव साझा करते हुए कहा कि सीमांत क्षेत्रों में लोगों की सोच और आत्मविश्वास में उल्लेखनीय बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि स्थानीय उद्यमिता, होम-स्टे, हस्तशिल्प, जैविक खेती और महिला स्वयं-सहायता समूहों की गतिविधियां सीमांत समाज को नई ऊर्जा दे रही हैं। इन पहलों से न केवल पलायन में कमी आई है, बल्कि सीमांत गाँवों का रिवर्स पलायन भी हो रहा है।

राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखण्ड जैसे संवेदनशील राज्य में विकास योजनाएँ तैयार करते समय भूगोल, जलवायु और स्थानीय संस्कृति को ध्यान में रखना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हमें भारतीय संदर्भ के अनुरूप समाधान विकसित करने होंगे जो हिमालयी परिस्थितियों के अनुकूल हों। उन्होंने कहा कि सशस्त्र बलों, शिक्षण संस्थानों, अनुसंधान केंद्रों और नागरिक प्रशासन के बीच साझेदारी और समन्वय को बढ़ाना चाहिए।

(Udaipur Kiran) / विनोद पोखरियाल

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