धर्मशाला, 05 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । उपमुख्य सचेतक केवल सिंह पठानिया ने कहा कि केंद्र सरकार हिमाचल के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के लिए 3 प्रतिशत शुद्ध उधार सीमा का मापदंड रखा है, पर लगता है कि केंद्र को यह एहसास नहीं है कि हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे और पहाड़ी राज्य की जरूरतें मैदानी राज्यों से अलग हैं।
रविवार को जारी एक प्रेस बयान में उन्होंने कहा कि एक ही तराजू से सबको तोलने की नीति, हिमाचल जैसे पहाड़ी और कठिन भैगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य के साथ अन्याय है। उन्होंने कहा कि प्रदेश का राजस्व घाटा अनुदान जो वर्ष 2021-22 में 10,249 करोड़ रुपये था, अब घटकर मात्र 3,257 करोड़ रुपये रह गया है।
हिमाचल सरकार ने अपने स्तर पर पूरी मेहनत की है और अपनी आय में से 9.05 प्रतिशत की सालाना वृद्धि दर्ज की है। लेकिन केंद्र से मिलने वाले ट्रांसफर और अनुदान मात्र 3.99 प्रतिशत की दर से बढ़े हैं जो प्रदेश की आवश्यकताओं के लिए कम है।
उन्होंने कहा कि हिमाचल की गरिमा और जनता की जरूरतों के लिए लड़ते रहेंगे। भाजपा की सरकार भले हमें आंकड़ों में दबा दे, पर हम सच्चाई के आंकड़ों से जवाब देंगे और प्रदेश के विकास और हित के लिए लड़ते रहेंगे।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभा रही है। लेकिन अपेक्षा यही है कि केंद्र भी सहयोग का वही भाव दिखाए क्योंकि हिमाचल भी इस देश का अभिन्न हिस्सा है। उन्होंने कहा कि पूर्व सरकार ने हिमाचल पर ऋण का बोझ विरासत में छोड़ा है, लेकिन हमारी सरकार ने अपने स्तर पर इसे संभालने की पूरी कोशिश की है। दुर्भाग्यवश, केंद्र से अपेक्षित सहयोग अभी तक नहीं मिल पाया है।
उन्होंने कहा कि कोविड महामारी के समय जब अन्य राज्यों को अतिरिक्त उधारी की अनुमति दी गई थी, तब हिमाचल पर भी उदारता दिखाई गई थी। अब जबकि हिमाचल में कांग्रेस की सरकार है, प्रदेश प्राकृतिक आपदा से बुरी तरह प्रभावित है और लोगों को सहायता की आवश्यकता है, तो केंद्र ने सुनवाई के बजाय दूरी बनाना ही उचित समझा है। कठिन समय में मदद की बजाय बहाने दिए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश पिछले तीन वर्षों से प्राकृतिक आपदाओं से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है, जिसमें अनगिनत बहुमूल्य जानें गईं हैं तथा प्रदेश को 15,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि प्रदेश का 67 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र वन भूमि होने के कारण राज्य के पास सीमित विकल्प बचे हैं।
(Udaipur Kiran) / सतेंद्र धलारिया
