

परिसर में मंदिर-मजार साथ होने से मिलती है एकता की मिसाल
नेहरू से लेकर डकैतों तक सबके लिए आस्था का केंद्र रहा लखना का कालिका देवी मंदिर
औरैया/इटावा, 2 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद के लखना कस्बे में स्थित ऐतिहासिक कालिका देवी मंदिर आस्था, सामाजिक समरसता और सांप्रदायिक सौहार्द का अनूठा उदाहरण है। यह मंदिर नवरात्र के दिनों में विशेष रूप से भक्तों के आकर्षण का केंद्र बनता है। यहां श्रद्धालु मनोकामना पूर्ण होने पर घंटा और झंडा चढ़ाकर माता के दरबार में कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
इटावा के वरिष्ठ पत्रकार विकास मिश्रा बताते हैं कि मथुरा के राजा लवणासुर शिव भक्त थे, जिन्हें भगवान शिव से त्रिशूल का वरदान प्राप्त था। इसी वरदान के बल पर वह प्रजा पर अत्याचार करते थे। अत्याचारी लवणासुर का वध करने और मथुरा राज्य पर विजय पाने के लिए भगवान श्रीराम के भाई शत्रुघ्न ने लखना में नौ देवियों की स्थापना कर पूजन-अर्चन किया। देवी के वरदान से ही उन्होंने लवणासुर का वध कर मथुरा पर विजय पाई।
मान्यता है कि अपने प्रवास के दौरान जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी भी यहां रुके थे। बाद में जैन अनुयायियों ने देवी प्रतिमाओं के साथ महावीर स्वामी की प्रतिमा भी यहां स्थापित की। आज भी देवी और महावीर दोनों की पूजा-अर्चना साथ-साथ की जाती है।
स्थानीय दुकानदार राजेश ने बताया कि लखना स्टेट के राजा जसवंत राव कालिका देवी के उपासक थे। एक बार यमुना नदी पार न कर पाने से वे देवी के दर्शन नहीं कर सके और व्यथित होकर अन्न-जल का त्याग कर दिया। उसी रात देवी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वह स्वयं उनके राजप्रासाद में विराजमान होंगी। इसके बाद बेरी शाह के बाग में देवी की प्रतिमाएं प्रकट हुईं और वहीं मंदिर की स्थापना कराई गई। 1820 में राजा जसवंत राव ने मंदिर का निर्माण कराया, जो समय-समय पर जीर्णोद्धार के बाद आज भी भव्य स्वरूप में खड़ा है।
दलित पुजारी परंपरा और गंगा-जमुनी तहज़ीब
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ आदिकाल से आज तक पुजारी की परंपरा दलित परिवार से चली आ रही है। समाज के सभी वर्ग इसे पूर्ण श्रद्धा से स्वीकारते हैं। मंदिर परिसर में ही स्थित सैयद बाबा की मजार हिंदू-मुस्लिम एकता का बड़ा उदाहरण है। मान्यता है कि मां कालिका की पूजा तभी पूर्ण होती है जब सैयद बाबा की दरगाह पर भी चादर और प्रसाद चढ़ाया जाए। यही कारण है कि यहां मंदिर की घंटियों और दरगाह की अज़ान जैसी आयतों की गूंज एक साथ सुनाई देती है।
नेहरू और डकैत भी थे भक्त
वरिष्ठ पत्रकार बीरेन्द्र सिंह सेंगर ने बताया कि लखना का यह मंदिर सिर्फ आम श्रद्धालुओं का ही नहीं, बल्कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जैसे दिग्गज नेताओं की आस्था का केंद्र भी रहा। नेहरू कई बार इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए आए। यही नहीं, चंबल घाटी के डकैत भी यहां आकर घंटा और झंडा चढ़ाकर मां का आशीर्वाद लेते थे।
परंपराएं और आस्था
मंदिर में मन्नत पूरी होने पर भक्त घंटा-झंडा अर्पित करते हैं। यहां बच्चों का मुंडन संस्कार और विवाह उपरांत बहू के प्रथम दर्शन की परंपरा भी प्रचलित है। मंदिर की छत पर उग रहा सदियों पुराना पीपल का वृक्ष इसकी प्राचीनता का जीवंत प्रमाण है।
लखना मंदिर तक पहुंचने के लिए नेशनल हाईवे से बकेवर कस्बे के रास्ते लगभग तीन किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। लखना बाईपास के पुराने मार्ग पर थोड़ी ही दूरी पर सड़क किनारे यह मंदिर स्थित है
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(Udaipur Kiran) कुमार
