Madhya Pradesh

अनूपपुर: आदिवासी परिवारों की अनूठी परंपरा, रावण को देवता मान विजयदशमी में करते हैं पूजा

रावण की पूजा करते रावण की आदिवासी परिवार

रावण की ‘जीने और जीने देने’ की सोच पर भरोसा करता आदिवासी परिवार

अनूपपुर , 2 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । विजयदशमी पर जहां पूरे देश में बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में रावण दहन किया जाता है वहीं मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के देवरी गाँव में जहां हर विजयदशमी पर रावण दहन नहीं होता, बल्कि विधिविधान से उसकी पूजा की जाती है। स्थानीय आदिवासी समुदाय रावण को अपना देवता मानते हैं। उनका कहना है कि रावण ‘जीने और जीने देने’ की सोच पर भरोसा करता था।

अनूपपुर जिले के जनपद पंचायत कोतमा जिले के ग्राम देवरी में विजयदशमी के दिन रावण की पूजा की जाती है। कुछ आदिवासी परिवार रावण को अपना देवता मानते हुए दशहरा के दिन विधि विधान से उसकी पूजा अर्चना करते हैं। इस आदिवासी अंचल के लोगों कि यह अनूठी परंपरा है बताते हैं कि पूर्वज इस प्रक्रिया को निरंतर दशहरे के दिन मनाते थे लेकिन बीच में कुछ समस्याओं के कारण बंद कर दिया गया था अब 6 साल से उन्हें नई पीढ़ी दशानन रावण की पूजा करना शुरू कर दिया है।

यह है मान्यता

देवरी गांव के लोगों ने बताया कि रावण की माता कैकसी वह असुर कुल से थीं और दैत्यराज सुमाली की पुत्री थीं। देवरी में रहने वाले आदिवासी परिवार के कुल और वंश की बहन और माता थी जिस कारण से रावण उनका पुत्र और उच्च ब्राह्मण कुल के साथ-साथ इन आदिवासियों का राजा था जिस कारण से रावण की पूजा उक्त आदिवासी परिवार के साथ-साथ वहां के रहने वाले अन्य लोग करते हैं रावण की माता कैकसी ने महर्षि विश्रवा से विवाह किया था, जो ऋषि पुलस्त्य के पुत्र थे। इसी विवाह से रावण, कुंभकर्ण, शूर्पणखा और विभीषण का जन्म हुआ था।

समाज, संस्कृति और रावण के जियो और जीने दो की सिद्धांत को जिंदा रखना इन आदिवासी का मूल मकसद है। आदिवासी समाज के लोगों ने बताया कि इनका मूल मंत्र ही रावण के सिद्धांतों पर चलता है इसीलिए रावण को पजनी मानते हुए हर विजयदशमी में उत्सव के तौर पर रावण की पूजा की जाती है।

(Udaipur Kiran) / राजेश शुक्ला

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